Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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महाकवि भूघरदास : नांगी सम्प्रदाय (सन्त डेढराज) राधास्वामी सत्संग, (लाला शिवदयाल सिंह खत्री स्वामीजी) सन्त मत तथा सम्प्रदाय से पृथक् सन्तों में स्वामी रामतीर्थ, महात्मागाँधी आदि उल्लेखनीय है।
डॉ. त्रिलोकीनारायण दीक्षित के अलावा आचार्य परशुराम चतुर्वेदी' एवं मेकालिफ' ने भी जयदेव से इस काव्य परम्परा का प्रारम्भ माना है । डॉ. विष्णुदत्त राकेश ने तो स्पष्ट शब्दों में इनका समय 13 वीं शताब्दी स्वीकार करने में कोई अनौचित्य नहीं माना है। डॉ. रामेश्वरप्रसादसिंह ने इसे जयदेव से 19 वीं शताब्दी के महात्मा गाँधी सका विस्तृत माना है।"
डॉ. मुक्तेश्वर तिवारी ने भी सन्त परम्परा को तीन भागों में बाँटा है - 1. कबीर के पूर्ववर्ती सन्त - नामदेव, जयदेव आदि । 2. कबीर और उनके समकालीन सन्त - रैदास, पीपा आदि। 3. कबीर के परवर्ती सन्त और सन्त सम्प्रदाय - दादू, नानक, सुन्दरदास
आदि।'
सन्त परम्परा के सन्दर्भ में नवीन दृष्टि :- आचार्य परशुराम चतुर्वेदी द्वारा लिखित पुस्तक "उत्तरी भारत की सन्त परम्परा” तथा उसी को आधार या प्रमाण मानकर अन्य विद्वानों द्वारा मान्य सन्त परम्परा के सन्दर्भ में डॉ. राजदेवसिंह का यह कथन विशेष ध्यान देने योग्य है - "आचार्य परशुराम चतुर्वेदी ने कबीर के पूर्वकालीन सन्तों में जैदेव, नामदेव, सधना, लालदेद, वेणी और त्रिलोचन का उल्लेख किया है। स्पष्ट है कि सन्तपरम्परा का प्रारम्भ वे इन्हीं से मानते हैं लेकिन गोस्वामी तुलसीदास द्वारा "मानस" के कागभुशुण्डि - गरुड़ सम्वाद में
1. हिन्दी सन्त साहित्य- डॉ. त्रिलोकीनारायण दीक्षित पृष्ठ 86 से 89 तथा उत्तरी भारत की
सन्त परम्पस डॉ. परशुराम चतुर्वेदी । 2. वही पृष्ठ 27 3. सन्त साहित्य के प्रेरणा स्रोत आचार्य परशुराम चतुर्वेदी पृष्ठ 13 -- 14 4. दी सिक्ख रिलीजन भाग 6 – मेकालिफ पृष्ठ 16 5. उत्तर पारत के निर्गुण पंथ साहित्य का इतिहास पृष्ठ 13 -14 6. सन्त काव्य में योग का स्वरूप -- डॉ. रामेश्वरप्रसाद सिंह पृष्ठ 56 7. मध्ययुगीन सूफी और सन्त साहित्य-डॉ. मुक्तेश्वर तिवारी।