Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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एक समालोचनात्मक अध्ययन
सन्त कवि जगजीवन साहब ने अपनी रचनाओं में वेद, पुराण, ग्रन्थ आदि की कटु निन्दा की है। उनके अनुसार बिना भजन, भक्ति सब नि:सार है; चाहे काव्य-रचना हो या ग्रन्थ-रचना ! अनेक पुराणों का पारायण करता हुआ “अहर्निश" कविताई करता हुआ, मानव बिना ब्रह्मज्ञान के नि:सार है। तत्त्व के अभाव में कवि व्यर्थ ही तत्त्वरहित पदार्थों में फंसे रहते हैं
पढ़े पुराण ग्रन्छ रात दिन करै कविताई सोई।
ज्ञान कथै शब्द का तबहु भक्ति न होई ।। सन्त रैदास की दृष्टि में आत्मा के सत्स्वरूप का दर्शन करना ही काव्य का लक्ष्य है । वे हरितत्त्व के बिना सारी पण्डित वाणी को थोथी मानते हैं -
थोथा पण्डित, थोथी वानी । थोथी हरि बिनु सबै कहानी ॥
पलटू साहब साखी, साबदी, कविता आदि सभी को प्रपंच मानते हैं। एक मात्र निर्गुण ब्रह्म की भक्ति ही सार्थक है, बाकी सब व्यर्थ है -
पलटू सब परपंच है, करै सो फिर पछितात।
एक भक्ति मैं जानौ, और झठ सब बात ।। सन्त कवि बुल्ला साहब की दृष्टि में शब्दों द्वारा ज्ञान के प्रदर्शन मात्र से कोई बड़ा अथवा महत्त्वपूर्ण कवि नहीं बन जाता है । महत्ता वास्तविक रूप में विश्वास और अनुभव की है
__ का भयो शब्द के कहे बहुत करि ज्ञान दे।
मन परतीत नहीं तो, कहा जम जान दे॥' दरिया साहब (मारवाड़ वाले) सबका सार एवं काव्य का एक मात्र लक्ष्य निर्गुण राम का स्मरण मानते हैं -
सकल कवित्त का अरथ है सकल बात की बात।
दरिया सुमिरन राम का कर लीजे दिन रात ।। सुन्दरदास सभी सन्तों में सर्वाधिक शिक्षित भाषाविज्ञ थे। उन्होंने काव्य में शुद्ध कवित्त, मोहकता, सरसता, तुकान्तता, छन्दबद्धता आदि को आवश्यक 1. शब्द संग्रह पृष्ठ 75 2, रैदास की बानी पृष्ठ 25 3. पलटू साहब की बानी पृष्ठ 26 4. बुल्ला साहब की बानी पृष्ठ 25 5. दरिया साहब मारवाड़ वाले की बानी पृष्ठ 9