Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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एक समालोचनात्मक अध्ययन गूढ़ता, विलष्टता तथा चमत्कारप्रधानता दृष्टिगोचर होती है। इसमें प्रतीक प्रयोग तथा उलटवासियों के भी प्रयोग दर्शनीय है।
निष्कर्षत: हम कह सकते हैं कि सन्त कवियों ने हिन्दी साहित्य को विचारों की अटूट सम्पदा दी, जिससे सम्पूर्ण विश्व को तथा मानव समाज को कल्याण के पथ का पथिक बनाया जा सकता है ।व्यक्तिोत्थान के साथ -साथ समाज कल्याण किया जा सकता है । परमतत्त्व की खोज या निर्गुण ब्रह्म की उपासना, प्रेम, सहज समाधि की स्थिति, सद्गुरु एवं सत्संग की महिमा, दया, क्षमा, सन्तोष, विश्वबन्धुत्व आदि की भावनाओं का प्रचार तथा रूढ़ियों, अन्धविश्वासों एवं बाह्याडम्बरों का विरोध सन्त साहित्य की अनुपम विशेषताएँ है। काव्य के कलात्मक सौन्दर्य की दृष्टि से रूपकों के प्रयोग, प्रतीकयोजना, उलटवासी उक्तियाँ, सन्ध्या भाषा का प्रयोग आदि अपने आप में विशिष्ट उपलब्धि है । जनसाधारण के प्रतिनिधित्व के रूप में “सधुक्कडी भाषा" द्वारा सरल, सहज, मावानुकूल अभिव्यक्ति भी सन्त साहित्य की अद्वितीय विशेषता है । वास्तव में सन्त साहित्य का हिन्दी साहित्य के लिए अद्भुत एवं अनुपम योगदान है, जो हमारे गर्व करने योग्य है और सदैव रहेगा।
इस अध्याय का उपसंहार हम डॉ. रामकुमार वर्मा के निम्नलिखित शब्दों से करते हैं - "जब धर्म के मानदण्डों में नवीन परिवर्तन हो रहे थे और उसे अनेक परिस्थितियों से संघर्ष करना पड़ रहा था उस समय सन्त सम्प्रदाय ने धर्म का ऐसा स्वाभाविक, व्यावहारिक और विश्वासमय रूप उपस्थित किया कि वह विश्वधर्म बन गया और शताब्दियों के लिए जन-जागरण का सन्देश लेकर चला। उसने अन्धविश्वासों को तोड़कर समाज का पुन: संगठन किया, जिसमें ईर्ष्या-द्वेष के लिए कोई स्थान नहीं था । समाज के लिए जिस स्तर तक देववाणी नहीं पहुँच सकती थी तथा धार्मिक ग्रन्थों की गहराई की थाह जिनके द्वारा नहीं ली जा सकती थी, उन्हें धर्मप्रवण बनाकर आशा और जीवन का सन्देश सुनाना सन्त सम्प्रदाय द्वारा ही सम्भव हो सका था। पुरातन का संशोधन और नवीन का संचयन करने में संत सम्प्रदाय ने विशेष अन्तर्दृष्टि का परिचय दिया। राजनैतिक, धार्मिक और सामाजिक दिशाओं में इस सम्प्रदाय ने जो कार्य किया है, उसे इतिहास कभी भुला नहीं सकेगा।"