Book Title: Mahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Author(s): Narendra Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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एक समालोचनात्मक अध्ययन कठिन साधना की आवश्यकता होती है। संसार ऊपरी आवरण को ही पहिचानता है। गुरु की कृपा, भगवान का आग्रह- अनुग्रह, सत्संग का प्रभाव, अपना चिन्तन-मनन हमें बता सकता है कि ऊपरी आवरणों के भीतर हमारा अपना भाव या स्वभाव क्या है? जिस समय अपने “भाव" का ज्ञान हो जाता है अर्थात् "स्व" का हान होने पर "र" का ज्ञा: मरमेव हो जाता है। "स्वभाव का ज्ञान होने पर “परभाव" या "विभाव" का ज्ञान भी हो जाता है। जो स्वभाव दशा में रहते हैं। वे भोले भाव से रघुराई (ईश्वर) या परमतत्त्व को पा लेते हैं।
“कहै कबीर जो रहे सुभाई, भौरे भाव मिले रघुराई।' जिसे स्वभाव की प्राप्ति हो गई, आत्मानुभवरूपी भक्ति मिल गई, उसे देवलोक इन्द्रलोक, तपलोक, सत्यलोक, निधिलोक, शिवलोक, बैकुंठ आदि लोक तथा मोक्ष आदि परमपद भी इसी जिन्दगी में जीते जी उपलब्ध हो जाता है । यह भक्ति ही सहज है । इस भक्ति के मिलने पर विषयतृष्णा एवं माया का अपवारण होता है परन्तु यह सब उस माधव विट्ठल या राम की कृपा से ही सम्पन्न होता है। यह भक्ति अहं के पूर्णत्याग एकनिष्ठता, इन्द्रियनिग्रह और ईश्वर के प्रति परानुरक्ति के योग से मिलती है। हरि की संगति से आन्तरिक मोह और शारीरिक ताप दोनों मिट जाते हैं। हृदय में उस परमब्रह्म के प्रकर होते ही दिन-रात या चौबीस घण्टे का सुख सहज रूप से प्राप्त हो जाता है
हरि संगति सीतल मया मिटा मोह तन साप।
निसि बासर सुख निधि लहा जब अन्तरि प्रगटा आप ॥ * 5. वैराग्यपूर्वक मानवीय गुणों का महत्त्व - ज्ञानपूर्वकवैराग्य योग एवं भक्ति के लिए आवश्यक है। मन में विषय भोगों के प्रति आकर्षण नष्ट हुए बिना ईश्वरीय प्रेम या भक्ति असम्भव है। सच्चा ज्ञान या विवेक ही वैराग्य को जागृत करता है और वैराग्य द्वारा ही व्यक्ति भगवद्भक्ति की ओर उन्मुख होता है। मोह-माया पर विजय प्राप्त किए बिना वैराग्य की प्राप्ति असम्भव है
और वैराग्य भाव के बिना ईश्वर भक्ति नहीं हो सकती है। जिस प्रकार साधना के क्षेत्र में आत्म परिष्कार और ब्रह्म-साक्षात्कार के क्षेत्र में नाम जप, योगसाधना, वैराग्य-भावना, सद्गुरु और सत्संग का महत्त्व सन्त साहित्य में सर्वत्र दृष्टिगोचर होता है। उसी प्रकार सामान्य जनसमाज को कल्याण के पथ पर अग्रसर करने के लिए कुछ मानवीय गुणों का महत्त्व प्रतिपादित किया गया है। ये मानवीय गुण, जो मानव के व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में उन्नायक हैं, हितकारक 1. कबीर ग्रन्थावली,तिवारी पद 71
2. सन्त काव्य, पृष्ठ 394 : 9 3. कबीर ग्रन्थावली,तिवारी पद 43, पद 48, पद 198 4. वही, पृष्ठ 170 साखी