Book Title: Karmagrantha Part 3
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 16
________________ का है त भूतों की सृष्टि करता है, संहार करता है । काल के प्रभाव से प्रजा का संकोच-विस्तार होता है । सभी के सो जाने पर भी काल सदैव जाग्रत रहता है । इसीलिए दुरसितम काल ही इस संसार की विचित्रता, विविधता और जीत्रों के सुख-दुःख आदि का मूल कारण है। स्त्र भावषाद-स्वभाषबाद का अपम अनूठा ही दृष्टिकोण है । उसके अपने सर्व है ! वह कहता है कि संसार में जो कुछ भी कार्य हो रहे हैं, वे सब अपनेअपने स्वभाव के प्रभाव से हो रहे हैं। स्वभाव के बिना काल, नियति आदि ... कुछ भी नहीं कर सकते हैं । आम की गुठली में आम होने का स्वभाव है, इसीलिये उससे आम का वृक्ष और फल प्राप्त होता है और नीम की निम्बोली में नीम का वृक्ष होने का स्वभाव है । नीम कक्ष्या और ईख मीठा क्यों है। सो इसका कारणा उन-उनमें विद्यमान स्वभाव है। स्वभाववाद के विचारों के लिये निम्नलिखित उद्धरण उपयोगी है यः कन्टकामा प्रकरोति समय विचित्रमा मगपशिना प . स्वभावतः सर्वमिदं प्रवृस म कामचारोऽस्ति कुतः प्रयत्नः कांटों का नुकीलापन, मग त्र पक्षियों में पिपत्र-विचित्र म आदि होना स्वभाव से है । अन्य कोई कारण इम सष्टि के निर्माण आदि का नहीं दिखता है । सक स्वाभाविक है—नितक है, अन्य के प्रयत्न का इसमें सहयोग नहीं है। नियतिवाद-प्रकृति के अटल नियमों को नियति महते हैं । नियतिवाद का कहना कि जिसका जिस समय में नहीं जो होना है, वह होता ही है । सूर्य पूर्व से उदित होगा, कमल जल में उत्पन्न होगा, गाय, बैल आदि पशुओं के चार पैर और मनुष्य के दो हाथ, दो पर होंगे । ऐसा. क्यों होता है ? तो इसका एकमात्र कारण ऐसा होना नियत है। मखलि गोशालक इसी नियतिवाद . का अनुगामी था । उसका मत था कि प्राणियों के पलेश आदि के लिये कोई हेतु नहीं, प्रत्यत्य नहीं, बिना प्रत्यय, विना हेतु ही प्राणी मुख-दुःख, क्लेश पाते १ सूमातम टीका

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