Book Title: Karmagrantha Part 3
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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कारण क्या है ? स 'क्या का समाधान करने के लिए विभिन दार्शनिकों, मिन्सकों ने अपने-अपने विचार एवं कृष्टिको प्रस्तुत किये हैं, जिनका संकेत श्वेताश्वतरोपनिषः १९ के निम्नलिखित श्लोक में देखने को मिलता है......
कालः स्वभावो निप्रतिपदच्छा भूतानियोनिः पुरुष इति पिश्यम् । संयोग एवा म स्वात्मभावादात्मायनोशः सुमधुःख हलोः ॥
कास, स्वभाव, नियति, यदृच्छा, पृथिव्यादि भूत और पुरुष-ये विभित्रता के कारण हैं | जीव स्याने दख-दुःस शाति के लिए है. वह न हैं। इसी प्रकार से अन्य-अन्य विचारकों ने अपने-अपने इष्टिकोण उपस्थित किये है । यदि उन सह विचारों का संकलन किया जाये तो एक महा निबन्ध तैयार हो सकता है। लेकिन यहां विस्तार में न जाफर संक्षेप में कारणों के रूप में निम्नलिखित विचारों के बारे में वर्षा करते हैं..
१ काल, २ स्वभाव, ३ नियति, ४ यहच्छा, ५ पौरुष, ६ पुरुष (ईश्वर)।
ये सभी विचार परस्पर एक दूसरे का खंडन एवं अपने द्वारा ही कार्य सिद्धि का मंजुन करते हैं । इनका दृष्टिकोण क्रमशः नीचे लिखे अनुमार है।
कालवाद-यह दर्शन काल को मुख्य मानता है । इस दर्शन का कथन है कि संसार का प्रत्येक कार्य बाल के प्रभाव से हो रहा है । काल के बिना स्वभाव, पौरुष आदि कुछ भी नहीं कर सकते हैं। एक मक्कि पाप या पुष्प कार्य करता है, किन्तु उसो समय उसका फल नहीं मिलता है। योग्य समय आने पर उसका अच्छा या बुग (शुभ-अशुभ फल मिलता है । यीम काल में सूर्य तपता है और शीत ऋतु में शीत पाहता है । इसी प्रकार मनुष्य स्वयं कुछ नहीं कर सकता है किन्तु * भय आने पर सब कार्य यथायोग्य प्रकार से होते जाते हैं । यह सब काल की महिमा है । कालवाद का दृष्टिकोण
कालः सूजति भूतानि कालः संहरते प्रजा । कालः सुप्तेषु आगति कालोहि दुरलिकमः ।।
१ महाभारत १.२४