Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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जीवाजीवाभिगम सूत्र
__.६.संज्ञाद्वार तेसिणं भंते! जीवाणं कई सण्णाओ पण्णत्ताओ?
गोयमा! चत्तारि सण्णाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - आहारसण्णा जाव परिग्गहसण्णा॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! उन जीवों में कितनी संज्ञाएं कही गई है? उत्तर - हे गौतम! उन जीवों में चार संज्ञाएं कही गई है। यथा- आहार संज्ञा यावत् परिग्रह संज्ञा। .
विवेचन - आहार आदि की अभिलाषा करना 'संज्ञा' है। इसके चार भेद हैं - १. आहार संज्ञा २. भय संज्ञा ३. मैथुन संज्ञा और ४. परिग्रह संज्ञा। . सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीवों में ये चारों संज्ञाएं पाई जाती हैं।
.. ७. लेश्या द्वार तेसिणं भंते! जीवाणं कइ लेसाओ पण्णत्ताओ?
गोयमा! तिण्णि लेसाओ पण्णत्ताओ तं जहा - किण्हलेस्सा, णीललेस्सा, काउलेस्सा॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! उन जीवों में कितनी लेश्याएं कही गई हैं ?
उत्तर - हे गौतम ! उन जीवों में तीन लेश्याएं कही गयी है। वे इस प्रकार हैं - १. कृष्ण लेश्या २. नील लेश्या और ३. कापोत लेश्या।
- विवेचन - योग की प्रवृत्ति से उत्पन्नं आत्मा के शुभाशुभ परिणाम को लेश्या कहते हैं। इसके छह भेद हैं - १. कृष्ण लेश्या २. नील लेश्या ३. कापोत लेश्या ४. तेजो लेश्या ५. पद्म लेश्या और ६. शुक्ल लेश्या। प्रारम्भ की तीन लेश्याएं अशुभ होती है और पिछली तीन लेश्याएं शुभ कही गई है। सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीवों में तीन अशुभ लेश्याएं ही पायी जाती हैं।
८.इन्द्रिय द्वार तेसि णं भंते! जीवाणं कइ इंदियाइं पण्णत्ताइं? गोयमा! एगे फासिंदिए पण्णत्ते।। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! उन जीवों में कितनी इन्द्रियां कही गई है ?, उत्तर - हे गौतम! उन जीवों में एक स्पर्शनेन्द्रिय कही गई है। विवेचन - 'इन्द्रनाद् इन्द्रः' इस व्युत्पत्ति के अनुसार संपूर्ण ज्ञान रूप परम ऐश्वर्य का अधिपति
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