Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रथम प्रतिपत्ति - तेइन्द्रिय जीवों का वर्णन
तेइन्द्रिय जीवों का वर्णन
से किं तं तेइंदिया ?
इंदिया अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा - ओवइया रोहिणिया जावं हत्थिसोंडा जे यावण्णे तहप्पगारा ते समासओ दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - पज्जत्ता य अपज्जत्ता य ॥ भावार्थ - तेइन्द्रिय जीवों का क्या स्वरूप हैं ?
तेइन्द्रिय जीव अनेक प्रकार के कहे गये हैं । वे इस प्रकार हैं- ओपयिक, रोहिणीक यावत् हस्तिशड़ तथा अन्य भी इसी प्रकार के तेइन्द्रिय जीव हैं । ये जीव दो प्रकार के हैं - पर्याप्तक और अपर्याप्तक ।
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विवेचन - तेइन्द्रिय जीव अनेक प्रकार के हैं। प्रज्ञापना सूत्र में इनके नाम इस प्रकार दिये हैं औपयिक, रोहिणीक, कुंथु (कुंथुआ), पिपीलिका (चींटी), उद्देशक, उद्देहिका ( उदई - दीमक ), उत्कलिक, उत्पाद, उत्कट, तृणाहार, काष्ठाहार (घुन), मालुक, पत्राहार, तृणवृन्तिक, पत्रवृन्तिक, पुष्पवृन्तिक, फलवृन्तिक, बीजवृन्तिक, तेंदुरणमज्जिक, त्रपुषमिंजिक, कार्पासस्थिमिंजक, हिल्लिक, झिल्लिक, झिंगिर, (झींगूर), किगिरिट, बाहुक, लघुक, सुभग, सौवस्तिक, शुकवृत्त, इन्द्रकायिक, इन्द्रगोपक (इन्द्रगोप- रेशमी कीडा) उरुलुंचक, कुस्थलवाहक, यूका (जूं), हालाहल, पिशुक (पिस्सु या खटमल) शतपादिका ( गजाई), गोम्ही (कानखजूरा) और हस्तिशौण्ड। इसी प्रकार के अन्य जीव तेइन्द्रिय हैं। तेइन्द्रिय जीव दो प्रकार के हैं- पर्याप्तक ओर अपर्याप्तक ।
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तहेव जहा बेईदियाणं णवरं सरीरोगाहणा ठक्कोसेणं तिण्णिगाठयाई, तिण्णि इंदिया, ठिंई जहपोर्ण अंतोमहतं ठक्कोसेणं एगूणपण्ण राईदिबाई, सेर्स तहेव दुगइया हुआगइपा परित्ता असंखेज्जा पण्णत्ता, से तं तेइंदिया ॥ २९ ॥
भावार्थ - इस प्रकार तेइन्द्रिय का कथन पूर्वोक्त मेइन्द्रिय के समान समझना चाहिये। विशेषता यह है कि तेइन्द्रिय जीवों की उत्कृष्ट शरीरावगाहना तीन कोल की है, उनके तीन इन्द्रियाँ हैं। स्थिति जघन्य अंतमुहूर्त और उत्कृष्ट उनपचाल रात दिन की है। शेषं सारा वर्णन पूर्ववत् बावत् दो गति वाले, दो आगति वाले प्रत्येक शरीरी और असंख्यात कहे गये हैं । यह तेइन्द्रियों का कथन हुआ ।
विवेचन - तेइन्द्रिय के २३ द्वारों का कथन भी बेइन्द्रियों के समान है किंतु निम्न द्वारों में अंतर हैं - १. अवगाहना द्वार - तेइन्द्रिय जीवों के शरीर की उत्कृष्ट अवगाहना तीन कोस की है। २. इन्द्रिय द्वार - इन जीवों के तीन इन्द्रियाँ होती हैं।
३. स्थिति द्वार - इनकी स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट ४९ रात दिन की है।
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