Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
१४८.
जीवाजीवाभिगम सूत्र
___अंतरद्वीपज मनुष्य जन्म की अपेक्षा देशोन पल्योपम का असंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट पल्योपम का असंख्यातवां भाग तक तथा संहरण की अपेक्षा जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटि अधिक पल्योपम के असंख्यातवें भाग तक उसी रूप में रह सकता है।
देव मर कर अनन्तर भव में पुनः देव नहीं होते अतः यह कहा गया है कि जो देवों की भवस्थिति है वही उनकी संचिट्ठणा (कायस्थिति) है। __
पुरुषों का अंतर पुरिसस्स णं भंते! केवइयं कालं अंतर होइ?
गोयमा! जहण्णेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं वणस्सइकालो। तिरिक्खजोणिय पुरिसाणं जहण्णेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं वणस्सइकालो एवं जाव खहयरतिरिक्खजोणियपुरिसाणं।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! पुरुष, पुरुष पर्याय छोड़ने के बाद कितने काल के पश्चात् पुरुष होता है अर्थात् पुरुष का अंतर कितने काल का होता है ?
उत्तर - हे गौतम! पुरुष का अंतर जघन्य एक समय उत्कृष्ट वनस्पतिकाल का है।
तिर्यंच योनिक पुरुष का अन्तर जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है। इसी प्रकार खेचर तिर्यंच पुरुष तक समझना चाहिये।
विवेचन - जीव अपनी वर्तमान पर्याय को छोड़ने के बाद पुन: उस पर्याय को जितने समय बाद प्राप्त करता है उसे अंतर कहते हैं। प्रस्तुत सूत्र में सामान्य रूप से पुरुष का अंतर जघन्य एक समय उत्कृष्ट वनस्पतिकाल का कहा है। जब कोई पुरुष उपशम श्रेणी चढ़कर पुरुष वेद को उपशांत कर देता है और एक समय बाद ही मर कर वह नियम से देवपुरुष में उत्पन्न होता है इस अपेक्षा से जघन्य अंतर एक समय का कहा है। यहाँ पर अनुत्तर विमान में जाने पर पुरुषवेद तो मिल जाता है परन्तु धर्माचरण नहीं होता है अतः यहाँ पर धर्माचरण की विवक्षा नहीं समझनी चाहिये। आगमों में अन्यत्र भी इस प्रकार का विवक्षा भेद बताया गया है। जैसे प्रज्ञापना सूत्र के १८ वें पद में सयोगी केवली अनाहारक का अंतर जघन्य उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त का बताया है। यहाँ पर भी सयोगीपने की गौणता की गई है। उत्कृष्ट वनस्पतिकाल अर्थात् काल से अनंत उत्सर्पिणियाँ अवसर्पिणियाँ और क्षेत्र से असंख्यात पुद्गल परावर्त बीत जाते हैं वे पुद्गल परावर्त आवलिका के असंख्यातवें भाग प्रमाण होते हैं।
__ तिथंच पुरुष, तियेच पुरुष पर्याय को छोड़ने के बाद जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल पश्चात् पुनः तिर्यंच पुरुष पर्याय को प्राप्त करता है। जिस प्रकार सामान्य तिर्यंच पुरुष का अंतर
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org