Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 329
________________ ३१२ जीवाजीवाभिगम सूत्र ६. चित्रांगा - विविध प्रकार के फूल देने वाले। ७. चित्ररसा - विविध प्रकार के भोजन देने वाले। ८. मण्यङ्गा - आभूषण का काम देने वाले। ९. गेहकारा-मकान के आकार में परिणत हो जाने वाले अर्थात् मकान की तरह आश्रय देने वाले। १०. अणिगणा - अनग्ना-वस्त्र आदि का काम देने वाले। टीकाकार ने और ग्रंथकार ने इन वृक्षों को कल्पवृक्ष लिखा है परन्तु ठापांग सूत्र के दसवे ठाणे के तीसरे उद्देशक में इनको दस प्रकार के वृक्ष लिखा है। जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र में भी इनको वृक्ष ही कहा है। यहां मूलपाठ में भी दुमगणा- द्रुमगण-वृक्ष ही कहा है अतः इनको कल्पवृक्ष कहना ठीक नहीं है। एकोरुक द्वीप के मनुष्यों का वर्णन एगूरुयदीवे णं भंते! दीवे मणुयाणं केरिसए आयारभाव पडोयारे पण्णत्ते? गोयमा! ते णं मणुया अणुवमतरसोमचारुरूवा भोगुत्तमगयलक्खणा भोगसस्सिरीया सुजायसव्वंगसुंदरंगा सुपइट्ठियकुम्मचारुचलणा रत्तुप्पलपत्तमउयसुकुमालकोमलतला गणगरसागरमगर-चक्कं-कवरंकलक्खणं-कियचलणा अणुपुव्वसुसाहयंगुलीया उण्णयतणुतंबशिद्धणहा संठियसुसिलिट्ठगूढगुप्फा एणीकुरुविंदावत्त वट्टाणुपुव्वजंघा समुग्गणिमग्गगूढजाणू गयससणसुजायसण्णिभोरू वरवारणमत्ततुल्ल विक्कमविलसियगई सुजायवरतुरगगुज्झदेसा आइण्णह ओवणिरुवलेवा पमुझ्यवरतुरयसीहअरेग-वट्टियकडी साहयसोणिंदमुसलदप्पणणिगरिय-वरकणगच्छ रुसरिसवरवइरपलियमज्झा उज्जुयसमसहिय सुजायजच्च तणुकसिणणिद्ध आदेजलडहसुकुमाल मउयरमणिज्ज रोमराई गंगावत्तपयाहिणावत्त तरंगभंगुररविकिरण-तरुणबोहिय अकोसायंतपउमगंभीर वियडणाभी झसविहगसुजाय पीणकुच्छी झसोयरा सुइकरणा पम्हवियडणाभा सण्णयपासा संगयपासा सुंदरपासा सुजायपासा मियमाइय-पीणरइयपासा अकरुंडयकणगरुयगणिम्मलसुजाय णिरुवहयदेहधारी पसत्थबत्तीस लक्खणधरा कणगसिलागलुज्जल पसत्थ समतलोवचियविच्छिण्ण पिहुलवच्छा सिरिवच्छंकिय वच्छा पुरवरफलिहट्टियभुया भुयगीसरविउलभोग आयाणफलिह उच्छूढदीहबाहू जूयसण्णिभपीणरइय पीवरपउट्ठ संठिय सुसिलिट्ठ विसिट्ठ घणथिरसुबद्ध सुणिगूढ पव्वसंधी रत्ततलोवइयमउय मंसल Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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