Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 351
________________ ३३४ जीवाजीवाभिगम सूत्र HHHHH __ अत्थि णं भंते! एगूरुयदीवे दीवे सीहाइ वा वग्धाइ वा विगाइ वा दीवियाइ वा अच्छाइ वा परच्छाइ वा परस्सराइ वा तरच्छाइ वा सियालाइ वा बिडालाइ वा सुणगाइ वा कोलसुणगाइ वा कोकंतियाइ वा ससगाइ वा चित्तलाइ वा चिल्ललगाइ वा? हंता अस्थि, णो चेव णं ते अण्णमण्णस्स तेसिं वा मणुयाणं किंचि आबाहं वा पबाहं वा उप्पायंति वा छविच्छेयं वा करेंति, पगइभद्दगा णं ते सावयगणा पण्णत्ता समणाउसो!। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! एकोरुक द्वीप में सिंह, व्याघ्र, भेडिया, चीता, रीछ, गेंडा, तरक्ष (तेंदुआ) बिल्ली, सियाल, कुत्ता, सूअर, लोमड़ी, खरगोश, चित्तल और चिल्लक हैं क्या? उत्तर - हे आयुष्मन् श्रमण! वहां सिंह आदि पशु हैं परन्तु वे परस्पर या वहां के मनुष्यों को पीड़ा या बाधा नहीं देते हैं और उनके अवयवों का छेदन नहीं करते हैं क्योंकि वे पशु स्वभाव से भद्रिक होते हैं एकोरुक द्वीप में धान्य अस्थि णं भंते! एगूरुयदीवे दीवे सालीइ वा वीहीइ वा गोधूमाइ वा जवाइ वा तिलाइ वा इक्खूइ वा? हंता अस्थि, णो चेवणं तेसिं मणुयाणं परिभोगत्ताए हव्वमागच्छंति। भावार्थ-प्रश्न - हे भगवन्! एकोरुक द्वीप में शालि, व्रीहि, गेहूं, जो, तिल और इक्षु होते हैं क्या? उत्तर - हाँ गौतम! वहां शालि आदि होते हैं, किंतु उन पुरुषों के उपभोग में नहीं आते। ___एकोरुकं द्वीप में गड्ढे आदि अस्थि णं भंते! एगूरुयदीवे दीवे गत्ताइ वा दरीइ वा घसाइ वा भिगूइ वा उवाएइ वा विसमेइ वा विजलेइ वा धूलीइ वा रेणूइ वा पंकेइ वा चलणीइ वा? णो इणढे समढे, एगूरुयदीवे णं दीवे बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते समणाउसो!। ___ कठिन शब्दार्थ - गत्ताइ - गड्ढे, दरीइ - बिल, घंसाइ - दरारें, भिगृह - भृगु-पर्वत शिखर आदि ऊंचे स्थान, उवाएइ - अवपात (गिरने की संभावना वाले स्थान), विसमेइ - विषम स्थान, विज्जलेइ - कीचड़, चलणीइ - चलनी-पांव में चिपकने वाला कीचड़। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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