Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 357
________________ जीवाजीवाभिगम सूत्र *********HERRERESSEEEEEEEEAAAAAAAA**************EEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE*** ३४० सुवण्णवासाइ वा रयणवासाइ वा वइरवासाइ वा आभरणवासाइ वा पत्तवासाइ वा पुप्फवासाइ वा फलवासाइ वा बीयवासाइ वा मल्लवासाइ वा गंधवासाइ वा वण्णवासाइ वा चुण्णवासाइ वा खीरंवुट्ठीइ वा रयणवुट्ठीइ वा हिरण्णवुट्ठीइ वा सुवण्णवुट्ठीइ वा तहेव जाव चुण्णवुट्ठीइ वा सुकालाइ वा दुकालाइ वा सुभिक्खाइ वा दुभिक्खाइ वा अप्पग्घाइ वा महग्घाइ वा कयाइ वा महाविक्कयाइ वा ( अणिहाइ वा ) सपिणहीइ वा संणिचयाइ वा णिहीइ वा णिहाणाइ वा चिरपोराणाइ वा पहीणस मियाइ वा पहीणसेउयाइ वा पहीणगोत्तागाराई वा जाई इमाई गामागरणगरखेडकब्बडमडंबदोणमुहपट्टणा - समसंवाहसण्णिवेसेसु सिंघाडग-तिग- चउक्क- चच्चर - चउमुहमहापहपहेसु णगर- णिद्धमण-गामणिद्धमण- सुसाण- गिरिकंदर-संतिसेलोवट्ठाण - भवणगिहेसु सण्णिक्खित्ताइं चिट्ठति ? णो इट्टे समट्ठे । कठिन शब्दार्थ - अयागराइ - लोहे की खान, वसुहाराइ वसुधारा-धन की धारा, सुकालाइ सुकाल, सुभिक्खाइ - सुर्भिक्ष दुभिक्खाइ - दुर्भिक्ष, अप्पग्घाइ - अल्पार्घ - अल्पमूल्य में वस्तु प्राप्ति, महाविक्कयाइ - महा विक्रय, सण्णिहीइ - सन्निधी-संग्रह, संणिचयाइ - संनिचय, पहीणसामियाइप्रहीण - नष्ट स्वामी, जिसके स्वामी नष्ट हो गये हों, पहीणसेउयाइ प्रहीणसेवकम् - धन डालने वाला नष्ट हो गया हो, पहीणगोत्तागाराइ प्रहीण गोत्रागार - जिनके गोत्रीजन नष्ट हो चुके हों, सण्णिक्खित्ताईसन्निक्षिप्त- रखा हुआ, गड़ा हुआ । भावार्थ- प्रश्न - हे भगवन्! एकोरुक द्वीप में लोहे की खान, तांबे की खान, सीसे की खान, सोने की खान, रत्नों की खान, वज्र हीरों की खांन, वसुधारा, सोने की वर्षा, चांदी की वर्षा, रत्नों की वर्षा, वज्रों की वर्षा, आभरणों की वर्षा, पत्र की वर्षा, पुष्प की वर्षा, फल की वर्षा, बीज की वर्षा, माल्य-गंध-वर्ण- चूर्ण की वर्षा, दूध की वर्षा, रत्नों की वर्षा, हिरण्यसुवण्ण यावत् चूर्णों की वर्षा, सुकाल, दुष्काल, सुर्भिक्ष, दुर्भिक्ष, सस्तापन, महंगापन, क्रय विक्रय, सन्निधि, संनिचय, निधि, निधान, बहुत पुराने निधान जिनके स्वामी नष्ट हो गये, जिनमें नया धन डालने वाला कोई न हो, जिनके गोत्रीजन सब मर चुके हों, ऐसे गांवों में, नगर में, आकर, खेट, कर्बट, मडंब, द्रोणमुख, पट्टन, आश्रम, संबाह और सन्निवेशों में रखा हुआ, श्रृंगाटक, त्रिक, चतुष्क, चत्वर, चतुर्मुख, महामार्गों पर, नगरों की गटरों में, श्मशान में, पहाड़ की गुफाओं में, ऊंचे पर्वतों के स्थान और भवनगृहों में रखा हुआ-गड़ा हुआ धन है क्या ? Jain Education International For Personal & Private Use Only - www.jalnelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370