Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 363
________________ ३४६ जीवाजीवाभिगम सूत्र * A RH उत्तरदिशा के मनुष्य कहि णं भंते! उत्तरिल्लाणं एगूरुयमणुस्साणं एगूरुयदीवे णामं दीवे पण्णत्ते? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं सिहरिस्स वासहरपव्वयस्स उत्तरपुरच्छिमिल्लाओ चरिमंताओ लवणसमुहं तिण्णि जोयणसयाई ओगाहित्ता एवं जहा दाहिणिल्लाण तहा उत्तरिल्लाण भाणियव्वं, णवरं सिहरिस्स वासहरपव्वयस्स विदिसासु, एवं जाव सुद्धदंतदीवेत्ति जाव सेत्तं अंतरदीवगा॥११२॥ .. भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! उत्तर दिशा के एकोरुक मनुष्यों का एकोरुक नामक द्वीप कहां है? उत्तर - हे गौतम! जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत के उत्तर में शिखरी वर्षधर पर्वत के उत्तर पूर्व के चरमांत से लवणसमुद्र में तीन सौ योजन आगे जाने पर वहां उत्तरदिशा के एकोरुक द्वीप के मनुष्यों का एकोरुक नामक द्वीप है। इत्यादि सारा वर्णन दक्षिण दिशा के एकोरुक द्वीप की तरह समझ लेना चाहिये। विशेषता यह है कि यहां शिखरी वर्षधर पर्वत की विदिशाओं में ये द्वीप स्थित हैं ऐसा कहना चाहिये। इसी प्रकार शुद्धदंत द्वीप पर्यन्त कथन करना चाहिये। यह अंतरद्वीपक मनुष्यों का कथन हुआ। विवेचन - जम्बूद्वीप में भरत क्षेत्र और हैमवत क्षेत्र की मर्यादा करने वाला चुल्लहिमवान पर्वत है। वह पर्वत : पूर्व और पश्चिम में लवणसमुद्र को स्पर्श करता है। उस पर्वत के पूर्व और पश्चिम के चरमान्त से चारों विदिशाओं (ईशान, आग्नेय, नैऋत्य और वायव्य) में लवण समुद्र में ३००-३०० योजन जाने पर प्रत्येक विदिशा में एकोरुक आदि एक एक द्वीप आता है। ये द्वीप गोल हैं। उनकी लम्बाई चौड़ाई तीन सौ-तीन सौ योजन की है। प्रत्येक की परिधि ९४९ योजन से कुछ कम है। इन द्वीपों से चार सौ चार सौ योजन लवण समुद्र में जाने पर क्रमश: पांचवां, छठा, सातवां और आठवां द्वीप आते हैं। इनकी लम्बाई चौड़ाई चार सौ चार सौ योजन की है। ये भी गोल है। इनकी प्रत्येक की परिधि १२६५ योजन से कुछ कम हैं। इसी प्रकार इनसे आगे क्रमशः ५००, ६००, ७००, ८०० और ९०० योजन जाने पर क्रमश: चार चार द्वीप आते जाते हैं इनकी लम्बाई चौड़ाई पांच सौ से लेकर नौ सौ योजन व्रक क्रमशः समझनी चाहिये। ये सभी गोल है। तिगुनी से कुछ अधिक इनकी परिधि है। इस प्रकार चुल्लहिमवान पर्वत की चारों विदिशाओं में अट्ठाईस अन्तरद्वीप हैं। जिस प्रकार चुल्लहिमवान पर्वत की चारों विदिशाओं में अट्ठाईस अन्तरद्वीप कहे गये हैं उसी प्रकार शिखरी पर्वत की चारों विदिशाओं में भी अट्ठाईस अन्तरद्वीप हैं। इस तरह कुल छप्पन अन्तरद्वीप कहे गये हैं। जिनके नाम इस प्रकार हैं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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