Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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- जीवाजीवाभिगम सूत्र
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भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! एकोरुक द्वीप में आबाह, विवाह, यज्ञ, श्राद्ध, स्थालीपाक, चोलोपनयन, सीमन्तोन्नयन, पितृपिण्डदान आदि संस्कार हैं क्या?
उत्तर - यह अर्थ समर्थ नहीं है। हे आयुष्मन् श्रमण! ये संस्कार वहां नहीं हैं। वे मनुष्य आबाह, विवाह, यज्ञ, श्राद्ध भोज, चोलोपनयन, सीमन्तोन्नयन, पितृ पिण्डदान आदि व्यवहार से रहित हैं। .
एकोरुक द्वीप में महोत्सव __ अत्थि णं भंते! एगोरुयदीवे दीवे इंदमहाइ वा खंदमहाइ वा रुद्दमहाइ वा सिवमहाइ वा वेसमणमहाइ वा मुगुंदमहाइ वा णागमहाइ वा जक्खमहाइ वा भूयमहाइ वा कूवमहाइ वा तलायणइमहाइ वा दहमहाइ वा पव्वयमहाइ वा रुक्खरोवणमहाइ वा चेइयमहाइ वा थूभमहाइ वा०?
णो इणटे समटे, ववगयमहमहिमा णं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो!।
कठिन शब्दार्थ - इंदमहाइ - इन्द्र महोत्सव, थूभमहाइ - स्तूप महोत्सव। . भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! एकोरुक द्वीप में इन्द्र महोत्सव, स्कंद महोत्सव, रुद्र (यथाधिपति) महोत्सव, शिव महोत्सव, वेश्रमण महोत्सव, मुकुंद महोत्सव, नाग महोत्सव, यक्ष महोत्सव, भूत महोत्सव, तालाब महोत्सव, नदी महोत्सव, द्रह महोत्सव, पर्वत महोत्सव, वृक्षारोपण महोत्सव, चैत्य महोत्सव और स्तूप महोत्सव होते हैं क्या?
उत्तर - हे आयुष्मन् श्रमण! ये महोत्सव वहां नहीं होते हैं। वे मनुष्य महोत्सव की महिमा से रहित होते हैं।
. एकोरुक द्वीप में खेल आदि अस्थि णं भंते! एगोरुय दीवे दीवे णडपेच्छाइ वा णट्टपेच्छाइ वा मल्लपेच्छाइ वा मुट्ठियपेच्छाइ वा विडंबगपेच्छाइ वा कहगपेच्छाइ वा पवगपेच्छाइ वा अक्खायगपेच्छाइ वा लासगपेच्छाइ वा लंखपेच्छाइ वा मंखपेच्छाइ वा तूणइल्लपेच्छाइ वा तुंबवीणपेच्छाइ वा कावपेच्छाइ वा मागहपेच्छाइजल्लपेच्छाइ वा?
णो इणढे समढे, ववगयकोउहल्ला णं ते मणुयगणा पण्णत्ता सम्पाउसो!।
कठिन शब्दार्थ - णडपेच्छाइ - नटप्रेक्षेति-नट का खेल, विडंबगपेच्छाई - विदूषकों को देखने वालों का मेला, जल्लपेच्छाइ - स्तुति पाठकों का मेला, ववगयकोउहल्ला - कौतूहल से रहित।
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