Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तृतीय प्रतिपत्ति मनुष्य उद्देशक एकोरुक द्वीप में विवाह आदि
णो इणट्ठे समट्टे, ववगयवेराणुबंधा णं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो ! । भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! एकोरुक द्वीप में अरि, वैरी, घातक, वधक, प्रत्यनीक (विरोधी) प्रत्यमित्र (पहले मित्र रह कर अमित्र हुआ व्यक्ति या दुश्मन का सहायक ) हैं क्या ?
उत्तर - हे आयुष्मन् श्रमण ! एकोरुक द्वीप में अरि, वैरी आदि नहीं हैं । वे मनुष्य वैरभाव से रहित होते हैं ।
एकोरुक द्वीप में मित्र आदि
अत्थि णं भंते! एगूरुयदीवे० मित्ताइ वा वयंसाइ वा घडियाइ वा सहीइ वा सुहियाइ वा महाभागाइ वा संगइयाइ वा ?
इट्टे समट्टे, ववगयपेम्मा णं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो !।
कठिन शब्दार्थ - वयंसाइ - वयस्य- समान वय वाला, घडियाइ - घटित प्रेमी, सहीइ सखा, सुहियाइ - सुहृद - निरन्तर साथ रहने वाला, हित का उपदेश दाता, महाभागाइ - महाभाग - महान् भाग्यशाली संगइयाइ - सांगतिक - साथी ।
भावार्थ- प्रश्न - हे भगवन् ! एकोरुक द्वीप में मित्र, वयस्य (समान वय वाला), प्रेमी, सखा, सुहृद, महाभाग और सांगतिक हैं क्या ?
उत्तर - हे आयुष्मन् श्रमण ! एकोरुक द्वीप में मित्र आदि नहीं हैं। वे मनुष्य प्रेमानुबन्ध रहित हैं। एकोरुक द्वीप में विवाह आदि
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अत्थि णं भंते! एगोरुयदीवे० आवाहाइ वा वीवाहाइ वा जण्णाइ वा सद्धाइ वा थालिपागाइ वा चोलोवणयणाइ वा सीमंतुण्णयणाइ वा पिइ ( मय )पिंडणिवेयणाइ वा ?
इट्टे समट्टे, ववगयआवाहविवाहजण्णभद्धथालिपागचोलोवणतणसीमंतुण्णयणपिइपिंडणिवेयणा णं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो !
कठिन शब्दार्थ - आवाहाइ आबाह (सगाई), वीवाहाइ - विवाह (परिणय), जण्णाइ यज्ञ, सद्धाइ - श्राद्ध, थालिपागाइ स्थालीपाक ( वर-वधू भोज), चोलोवणयणाइ - चोलोपनयनशिखा धारण संस्कार, सीमंतुण्णयणाइ - सीमन्तोन्नयन-मुण्डन संस्कार विशेष, पिझ्झ( मय) पिंडणिवेयणाइ - पितृ (मृत) पिण्ड निवेदनमिति - पितरों को पिण्डदान आदि ।
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