Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तृतीय प्रतिपत्ति- मनुष्य उद्देशक - एकोरुक द्वीप में राजा आदि
णो इणट्टे समट्ठे, ववगयअसिमसिकिसिपणियवाणिज्जा णं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो !
कठिन शब्दार्थ- पणीइ - पण्य-किराना आदि, वणिज्जाइ - वाणिज्य ।
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भावार्थ - प्रश्न हे भगवन्! एकोरुक द्वीप में असि (शस्त्र आदि), मषि (लेखन आदि) कृषि, पण्य (किराना आदि) और वाणिज्य - व्यापार है ?
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उत्तर - यह अर्थ समर्थ नहीं है। हे आयुष्मन् श्रमण ! वे मनुष्य असि, मषि, कृषि, पण्य और वाणिज्य से रहित हैं ।
एकोरुक द्वीप में हिरण्य आदि
अत्थि णं भंते! एगूरुय दीवे दीवे हिरण्णेइ वा सुवण्णेइ वा कंसेइ वा दूसेड़ वा मणीइ वा मुत्तिएइ वा विउलक्षणकणगरयणमणिमोत्तियसंखसिलप्पवालसंतसारसावएज्जेइ वा ?
हंता अस्थि, णो चेव णं तेसिं मणुयाणं तिव्वे ममत्तभावे समुप्पज्जइ ।
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भावार्थ- प्रश्न हे भगवन् ! एकोरुक द्वीप में हिरण्य, सुवर्ण, कांसी, वस्त्र, मणि, मोती तथा विपुल धन सोना, रत्न, मणि, मोती, शंख, शिला, प्रवाल आदि प्रधान द्रव्य हैं ?
उत्तर - हाँ गौतम ! एकोरुकं द्वीप में हिरण्य सुवर्ण आदि हैं परन्तु उन मनुष्यों को उनमें तीव्र . ममत्वभाव नहीं होता है।
एकोरुक द्वीप में राजा आदि
अत्थि णं भंते! एयूरुयदीवे० रायाइ वा जुवरायाइ वा ईसरेइ वा तलवरेइ वा माडंबियाई वा कोडुंबियाई वा इब्भाइ वा सेट्ठीइ वा सेणावईइ वा सत्थवाहाइ वा ?
णो इणट्ठे समट्ठे, ववगयइड्डीसक्कारा णं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो!
कठिन शब्दार्थ - ईसरेइ - ईश्वर, तलवरेइ तलवर - राजा द्वारा दिये गये स्वर्ण पट्ट को धारण करने वाला अधिकारी, माडंबियाइ - माण्डम्बिक - उजडी वसति का स्वामी, इब्भाइ - इभ्य ( धनिक ), सत्थवाहाइ - सार्थवाह- अनेक व्यापारियों के साथ देशान्तर में व्यापार करने वाला प्रमुख व्यापारी ।
भावार्थ प्रश्न - हे भगवन् ! एंकोरुक द्वीप में राजा, युवराज, ईश्वर, तलवर, माडंबिक, कौटुम्बिक, इभ्य, सेठ, सेनापति, सार्थवाह आदि हैं क्या ?
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