Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 344
________________ तृतीय प्रतिपत्ति - मनुष्य उद्देशक - वृक्षों का संस्थान ........ ३२७ बढ़ाने वाला, मयणिज्जे-मदनीयं-मस्ती पैदा करने वाला, सव्विंदियगायपल्हायणिज्जे - सर्वेन्द्रियगात्र प्रल्हादनीयं-सभी इन्द्रियों और शरीर को आनन्द देने वाला। . भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! वहां के पुष्पों और फलों का आस्वाद कैसा होता है ? उत्तर - हे गौतम! जिस प्रकार चातुरंत चक्रवर्ती का कल्याणभोजन जो लाख गायों से निष्पन्न होता है, जो श्रेष्ठ वर्ण, गंध, रस और स्पर्श से युक्त है, आस्वादन के योग्य है, बार बार आस्वादन के योग्य है, जठराग्नि वर्धक है, धातुवृद्धिकारक है, उत्साह आदि बढ़ाने वाला है, मस्ती पैदा करने वाला है और सभी इन्द्रियों और शरीर को आनंददायक होता है, क्या ऐसा उन पुष्पों और फलों का स्वाद है ? हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है। उन पुष्पों और फलों का स्वाद उससे भी अधिक इष्टतर यावत् मनामतर होता है। विवेचन - शंका - चक्रवर्ती के कल्याणभोजन से क्या आशय है? समाधान - पुण्ड्र जाति के इक्षु को चरने वाली एक लाख गायों का दूध पचास हजार गायों को . पिलाया जाय, उन पचास हजार गायों का दूध पच्चीस हजार गायों को पिलाया जाय, पच्चीस हजार गायों का दूध १२५० गायों को पिलाया जाय, इस प्रकार क्रमशः आधी आधी गायों को पिलाते हुए अंतिम गाय का जो दूध हो, उस दूध से बनाई हुई खीर जिसमें विविध प्रकार के मेवे आदि द्रव्य डाले . गये हों, वह चक्रवर्ती का कल्याणभोजन कहलाता है। : ते णं भंते! मणुया तमाहारमाहारित्ता कहि वसहिं उर्वति? . गोयमा! रुक्ख गेहालया णं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो! भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! वे मनुष्य उक्त आहार करके किस प्रकार के निवासों में रहते हैं ? उत्तर - हे आयुष्मन् श्रमण गौतम! वे मनुष्य गेहाकार परिणत वृक्षों में रहते हैं। . ., वृक्षों का संस्थान ते णं भंते! रुक्खा किं संठिया पण्णत्ता? गोयमा! कूडागारसंठिया पेच्छाघरसंठिया सत्तागारसंठिया झयसंठिया थूभसंठिया तोरणसंठिया गोपुरवेइयचोपायालगसंठिया अट्टालगसंठिया पासायसंठिया हम्मतलसंठिया गवक्खसंठिया वालग्गपोत्तियसंठिया वलभीसंठिया अण्णे तत्थ बहवे वरभवणसयणासणविसिट्ठसंठाणसंठिया सुहसीयलच्छणा णं ते दुमगणा पण्णत्ता समणाउसो!॥ ' कठिन शब्दार्थ - कूडागारसंठिया - कूटाकार संस्थिता:-कूट-पर्वत के शिखर के आकार के, गोपुरवेइयचोपायालगसंठिया - गोपुरवेदिका चोप्पालक संस्थिता:-गोपुर-नगर के प्रधान द्वार जैसे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370