Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 339
________________ ३२२ जीवाजीवाभिगम सूत्र ARTHATARA सुस्सराओ कंता सव्वस्स अणुणयाओ ववगयवलिपलिया वंगदुव्वण्णवाहीदोहग्ग सोगमुक्काओ उच्चत्तेण य णराण थोवूणमुसियाओ सभावसिंगारागार चारुवेसा संगयगयहसिय भणियचेट्ठिय विलाससंलावणिउणजुत्तोवयार कुसला सुंदरथणजहणवयणकरचलण-णयणमाला वण्णलावण्णजोवण्णविलासकलिया णंदणवणविवरचारिणीउव्व अच्छराओ अच्छेरगपेच्छणिज्जा पासाईयाओ दरिसणिज्जाओ अभिरूवाओ पडिरूवाओ॥ ___ कठिन शब्दार्थ - पहाणमहिलागुणेहिं जुत्ता - प्रधान महिला गुणैर्युक्ताः-प्रधान महिला गुणों से युक्त, अच्चंत विसप्पमाण पउम सुकुमाल कुम्मसंठियविसिट्ठ चलणाओ - अत्यन्त विसर्पन्मृदु सुकुमार कूर्मसंस्थित विशिष्ट चरणाः-उनके चरण अत्यंत विकसित पद्म कमल की तरह सुकोमल कछुए की तरह उन्नत होने से सुंदर आकार के हैं, उन्जुमउयपीवरणिरंतरपुट्ठसाहिवंगुलीया - ऋजुमृदुकपीवर निरन्तर पुष्ट संहता अंगुलयः-सीधी कोमल स्थूल निरन्तर पुष्ट और मिली हुई पांवों की अंगुलियां वाली, उण्णयरइयतलिणतंब सुइणिद्धणक्खा - उन्नतरतिदतलिन ताम्र शुचि स्निग्ध नखा:-उन्नत, रति देने वाले, तलिन-पतले, ताम्र जैसे लाल, स्वच्छ एवं स्निग्ध. नंख वाली, रोमरहिय वट्टलट्ठसंठिय अजहण्णपसत्थलक्खण अकोप्पजंघजुयला - रोम रहित वृत्तलष्ट संस्थिताजघन्य प्रशस्तलक्षणा कोप्यजंघ युगला:-उनकी पिण्डलियां रोम रहित, गोल, सुंदर, संस्थित, उत्कृष्ट शुभ लक्षण वाली और प्रीतिकर होती है, सुणिम्मियसुगूढ जाणु मंडल सुबद्धसंधी - सुनिर्मित सुगूढ जानुमंडल सुबद्धसंधयः-सुनिर्मित, सुगूढ और सुबद्ध संधी वाले घुटने, कयलिक्खंभाइरेगसंठिय णिव्वणसुकुमाल मउयकोमल अविरल समसहियसुजाय वट्टपीवर णिरंतरोरु - कदलीस्तम्भातिरेक संस्थित निवर्ण सुकुमार मृदुक कोमलाविरल सम संहत सुजातवृत्त पीवर निरन्तरोरव:-उनकी जंघाएं कदली के स्तंभ के आकार वाली, व्रणादि रहित, सुकुमाल, मृदु, कोमल, अविरल-पास पास, समान प्रमाण वाली, मिली हुई, सुजात, गोल, मोटी और निरन्तर है, अट्ठावयवीई पट्टसंठियपसत्थविच्छिण्ण पिहुलसोणी - अष्टापदवीचि पट्टसंस्थित प्रशस्तविस्तीर्ण पृथुल श्रोणयः-अष्टापद द्यूत के मट्ट के आकार का प्रशस्त शुभ विस्तीर्ण मोटी श्रोणि-कमर के पीछे का भाग, वयणायामप्पमाणदुगुणिय विसाल मंसलसुबद्ध जहणवरधारणीओ - वदनायाम प्रमाण द्विगुणित विशाल मंसल सुबद्ध जघनवर धारिण्यः-मुख प्रमाण से दुगुना-चौबीस अंगुल प्रमाण विशाल, मांसल एवं सुबद्ध उनका जघन प्रदेश है, वज्जविराइयपसत्य लक्खण णिरोदरा - वज्र विराजित प्रशस्त लक्षण निरुदरा:-वज्र की तरह सुशोभित शुभ लक्षणों वाला पतला पेट, तिवलिवलीयतणुणमियमझियाओ - त्रिवलिवलितनुनमितमध्यिका:-त्रिवलि से युक्त, पतली और लचीली कमर, अणुब्भडपसत्यपीणकुच्छी - अनुद्भट प्रशस्त पीन कुक्षयः-उग्रता रहित, प्रशस्त और स्थूल कुक्षि, कंचणकलससमपमाणसम Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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