Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 336
________________ . तृतीय प्रतिपसि - मनुष्य उद्देशक - एकोरुक द्वीप के मनुष्यों का वर्णन ३१९ जमे हुए होते हैं, वे धुंघराले और दक्षिणावर्त होते हैं। वे मनुष्य लक्षण, व्यञ्जन और गुणों से युक्त होते हैं। वे सुंदर और सुविभक्त स्वरूप वाले होते हैं। वे प्रासादीय-प्रसन्नता पैदा करने वाले, दर्शनीय, अभिरूप और प्रतिरूप होते हैं। ते णं मणुया ओहस्सरा हंसस्सरा कोंचस्सरा० णंदिघोसा सीहस्सरा सीहघोसा मंजुस्सरा मंजुघोसा सुस्सरा सुस्सर णिग्योसा छाया उज्जोइयंगमंगा वज्जरिसहणाराय संघयणा समचउरंससंठाण संठिया सिणिद्धछवि णिरायंका उत्तमपसत्थअइसेस णिरुवमतणू जल्लमलकलंकसेयरयदोस वज्जियसरीरा णिरुवलेवा अणुलोमवाउ वेगा कंकग्गहणी कवोयपरिणामा सउणिव्व पोसपिटुंतण्रु परिणया विग्गहिय उण्णयकुच्छी पउमुप्पलसरिसगंध णिस्साससुरभिवयणा अट्ठधणुसयं ऊसिया। कठिन शब्दार्थ - हंसस्सरा - हंस स्वरा:-हंस पक्षी जैसे स्वर वाले, णंदिघोसा - नंदी घोष-बारह वाद्यों का समिश्रित स्वर जैसे घोष करने वाले, छाया उज्जोइयंगमंगा - छायोद्योतिताङ्गप्रत्यङ्गा-अंग अंग में कांति वाले, सिणिद्धछवि - स्निग्धच्छवयः-स्निग्ध छवि वाले, उत्तमपसत्थअइसेसणिरुवमतणू - उत्तम प्रशस्तातिशेष निरुपम तनवः-उत्तम, प्रशस्त, अतिशय युक्त और निरुपम शरीर वाले, जलमलकलंकसेयरयदोसवग्जियसरीरा - जल्लमलकलंकस्वेद रजोदोष वर्जित शरीरा:-शरीर से उत्पन्न मल, स्वेद (पसीने) आदि मैल के कलंक से रहित, स्वेद-रज आदि दोष से रहित शरीर वाले, णिरुवलेवा - निरुपलेप-मल मूत्र आदि के लेप रहित, कंकग्गहणी - कंकग्रहणयः-कंक पक्षी की तरह निर्लेप ग्रहणी-पाचन संस्थान (आंते) वाले, कवोयपरिणामा - कपोत परिणामा:-कपोत की तरह जिनकी जठराग्नि है जो कंकर आदि सबको पचाने वाले, सउणिव्वपोसपिटुंतरोरुपरिणया - शकुनेरिव पोसपृष्टान्तरोपरिणत:-पक्षी की तरह मलोत्सर्ग के लेप से रहित अपान देश (गुदा भाग) वाले, सुंदर पृष्ठ भाग, उदर और जंघा वाले, विग्गहिय उण्णहीयकुच्छी - विगृहीतोन्नत कुक्षयः-उन्नत और मुष्टिग्राह्य कुक्षि वाले, पउमुप्पलसरिसगंधणिस्सास सुरभिवयणा - पद्मोत्पल सदृश गंध निश्वास सुरभिवदनाः-पद्म कमल और उत्पल कमल जैसी सुगंध युक्त श्वासोच्छ्वास से सुगंधित मुख वाले। - भावार्थ - वे मनुष्य हंस जैसे स्वर वाले, क्रौंच जैसे स्वर वाले, नंदी (बारह वाद्यों का समिश्रित स्वर जैसे) घोष करने वाले, सिंह के समान स्वर वाले और गर्जना करने वाले, मधुर स्वर वाले, मधुर घोष वाले, सुस्वर वाले, सुस्वर और सुघोष वाले, अंग अंग में कान्ति वाले, वज्रऋषभनाराच संहनन वाले, समचतुरस्रसंस्थान वाले, स्निग्ध छवि वाले, रोगादि रहित, उत्तम प्रशस्त अतिशय युक्त और निरुपम शरीर वाले, स्वेद (पसीना) आदि मैल के कलंक से रहित और स्वेद-रज आदि दोषों से रहित शरीर वाले, उपलेप से रहित, अनुकूल वायु वेग वाले, कंक पक्षी की तरह निर्लेप ग्रहणी-पाचन संस्थान (आंतें) वाले, कबूतर की तरह जिनकी जठराग्नि है जो कंकर आदि सब पचा लेने वाले, पक्षी की तरह Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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