Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 331
________________ ३१४ जीवाजीवाभिगम सूत्र अणुपुष्वसुसाहयंगुलीया - पांवों की अंगुलियां प्रमाणोपेत और मिली हुई है जिनकी, उण्णयतणुतंबणिद्धणहा - उन्नत तनु ताम्र स्निग्धनखा: - जिनकी पैरों की अंगुलियों के नख उन्नत, पतले, ताम्र-लालवर्ण के और स्निग्ध (कांतिवाले) हैं, संठियसुसिलिट्ठगूढगुप्फा - संस्थित सुश्लिष्ट गूढगुल्फा: - जिनके गुल्फ (टखने) संस्थित (प्रमाणोपेत) घने और गूढ हैं, एणीकुरुविंदावत्तवट्टाणुपुव्वजंघा - एणीकुरुविन्दावर्त वृत्तानुपूर्व्यजंघाः - हरिणी और कुरुविंद (तृण विशेष) की तरह जिनकी पिण्डलियां क्रमशः स्थूल और गोल है, समुग्गणिमग्गगूढजाणू- समुद्गक निमग्न गूढ जानवः - संपुट में रखे हुए की तरह गूढ (अनुपलक्ष्य) घुटने वाले, गयसंसण-सुजायसण्णिभोरु - गजश्वसनसुजातसन्निभोरवः - जिनकी जांघे हाथी की सुंड की तरह सुंदर गोल और पुष्ट है, वरवारणमत्ततुल्लविक्कमविलसियगई - वरवारणमत्ततुल्यविक्रमविलासितगतयः - जिनकी चाल श्रेष्ठ मदोन्मत्त हाथी की चाल की तरह है, सुजायवरतुरगगुग्झदेसा - श्रेष्ठ घोडे की तरह जिनका गुह्यदेश गुप्त है, आइण्णहओवणिरुवलेवा - आकीर्णक घोड़े की तरह निरुपलेप-मलमूत्रादि के लेप से रहित, पमुइयवरतुरयसीहअइरेगवट्टियकडी - प्रमुदितवरतुरगसिंहातिरेक वर्त्ति कटयः - रोग रहित श्रेष्ठ घोडे और सिंह की तरह पतली और गोल कमर वाले, साहयसोणिंदमुसलदप्पणणिगरियवरकणगच्छरुसरिसवरवइरपलियमझा - संहृत सौनन्द मुसल दर्पण निगरतिवर कनकत्सरु सदृशवरव्रजवलित मध्याः - उनकी कमर संकुचित की गई तिपाई, मूसल, दर्पण का दण्डा और शुद्ध किये हुए सोने की मूंठ जैसी बीच में से पतली है, उज्जुयसमसहियसुजाय जच्चतणुकसिण णिद्ध आदेजलडहसुकुमालमठय रमणिज्ज रोमराई - ऋजुक सम संहित सुजात जात्य तनु कृष्ण स्निग्ध आदेय लडह सुकुमार मृदुक रमणीय रोमराजयः - उनकी रोमराजि सरल, सम, सघन, सुंदर, श्रेष्ठ, पतली काली, स्निग्ध, आदेय, लावण्यमय, सुकुमार, सुकोमल और रमणीय है, गंगावत्त पयाहिणावत्ततरंग भंगुर रविकिरण तरुणबोहिय अकोसायंत पउम गंभीर वियड णाभी - गंगावर्त प्रदक्षिणावर्त तरंग भंगुर रवि किरण तरुण बोधिताकोशायमान पद्म गंभीर विकट नाभयः - उनकी नाभि गंगा के आवर्त की तरह दक्षिणावर्त तरंग जैसी त्रिवली से भुग्न एवं तरुण-अभिनव रवि किरणों से खिले कमल के समान गंभीर और विशाल है, झसविहगसुजायपीणकुच्छी - झष विहग सुजात पीन कुक्षयः - मत्स्य और पक्षी की तरह सुंदर और पुष्ट कुक्षि वाले, झसोयरा - झषोदरा-मछली की तरह कृश पेट, सुइकरणाशुचिकरणा: - पवित्र इन्द्रियां, पम्हवियडणाभा - पद्म विकट नाभयः - कमल के समान विशाल नाभि सण्णयपासा - सन्नतपार्वा: - नीचे झुके हुए पार्श्वभाग, संगयपासा - संगतपाश्र्वाः - प्रमाणोपेत पार्श्व भाग, सुजायपासा - सुजात पााः - जन्म से सुंदर पार्श्व भाग, मियमाइयपीपरइयपासा - मित मात्रिक पीनरतिदपाश्र्वाः - परिमित मात्रा युक्त स्थूल और आनंद देने वाले पार्श्व, अकरुंडुयकणगरुयगणिम्मलसुजायणिरुवहयदेहधारी - अकरण्डुक कनक रुचक निर्मल सुजात निरुपहत देह धारिणः - वे ऐसी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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