Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तृतीय प्रतिपत्ति-द्वितीय नैरयिक उद्देशक - नरकावासों का विस्तार
विवेचन प्रस्तुत सूत्र में नरकावासों के वर्ण, गंध और स्पर्श का कथन किया गया है। नरकावासों का वर्ण अत्यंत काला, कालीप्रभा वाला, भय के उत्कट रोमांच वाला और भय उत्पन्न करने. वाला है। सांप, गाय, घोड़ा, भैंस आदि के सड़े हुए मृत शरीर से भी कई गुणी दुर्गंध वहां होती है। तलवार की धार, उस्तरे की धार, कदम्बचीरिका (एक प्रकार का घास जो डाभ से भी बहुत तीक्ष्ण होता है) शक्ति, सूइयों का समूह, बिच्छु का डंक, कपिकच्छू (खाज पैदा करने वाली बेल) अंगार, ज्वाला, छाणों की आग आदि से भी अधिक कष्ट देने वाला नरकों का स्पर्श होता है। .
नरकावासों का विस्तार
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इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए णरगा केमहालिया पण्णत्ता ?
गोयमा ! अयण्णं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीवसमुद्दाणं सव्वब्धंतरए सव्वखुड्डाए वट्टे, तेल्लापूवसंठाणसंठिए वट्टे, रहचक्कवाल संठाण संठिए वट्टे, पुक्खरकण्णिया संठाणसंठिए वट्टे, पडिपुण्णचंद संठाणसंठिए एक्कं जोयणसयसहस्सं आयामविक्खंभेणं जाव किंचि विसेसाहिए परिक्खेवेणं, देवे णं महिड्डिए जाव महाणुभागे जाव इणामेव इणामेव त्ति कट्टु इमं केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं तिर्हि अच्छराणिवाएहिं तिसत्तक्खुत्तो अणुपरियट्टित्ताणं हव्वमागच्छेज्जा, से णं देवे ताए उक्किट्ठाए तुरियाए चवलाए चंडाए सिग्घाए उद्धयाए जयणाए छेयाए दिव्वाए दिव्वगईए वीइवयमाणे वीइवयमाणे जहण्णेणं एगाहं वा दुयाहं वा तियाहं वा उक्कोसेणं छम्मासेणं वीइवएज्जा, अत्थेगइए वीइवएज्जा, अत्थेगइए णो वीइवएज्जा, एमहालया णं गोयमा ! इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए णरगा पण्णत्ता, एवं जाव अहेसत्तमाए, णवरं अहेसत्तमाए अत्थेगइयं णरगं वीइबएज्जा, अत्थेगइए णरगे णो वीइवएज्जा॥ ८४॥
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कठिन शब्दार्थ - सव्वदीवसमुद्दाणं सभी द्वीप समुद्रों में, सव्वब्धंतरए - सर्वाभ्यन्तरः- सबसे आभ्यंतर-अंदर, सव्वखुड्डाए - सर्वक्षुलकः-सब से छोटा, तेलापूयसंठाणसंठिए - तैलापूपसंस्थानसंस्थितः - तेल में तले हुए पूए के आकार का, रहचक्कवाल संठाण संठिए - रथचक्रवाल संस्थानसंस्थितः - रथ के पहिये के आकार का, पुक्खरकण्णियासंठाणसंठिए - पुष्कर (कमल) कर्णिका के आकार का, पडिपुण्णचंदसंठाणसंठिए - परिपूर्णचन्द्रसंस्थानसंस्थितः - पूर्णचन्द्रमा के आकार का, किंचिविसेसाहिए- कुछ अधिक, महिड्डिए - महर्द्धिक, महाणुभागे महानुभाग, केवलकप्पं - परिपूर्ण, अच्छराणिवाएहिं - चुटकियां बजाने जितने काल में, तिसत्तक्खुत्तो इक्कीसबार, अणुपरियट्टित्ता - चक्कर लगा कर, उक्किट्ठाए - उत्कृष्ट, तुरियाए - त्वरित, चवलाए - चपल,
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