Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
३०४
' जीवाजीवाभिगम सूत्र
वाली उद्योत विधि से (प्रकाश से) युक्त हैं। वे फलों से पूर्ण हैं, विकसित हैं, कुशविकुश से विशुद्ध उनके मूल हैं यावत् वे शोभा से अतीव अतीव शोभायमान हैं॥
५. ज्योतिशिखा नामक वृक्ष एगूरुयदीवेणं दीवे तत्थ तत्थ बहवे जोइसिहा णाम दुमगणा पण्णत्ता समणाउसो! जहा से अचिरुग्गयसरय-सूरमंडल-पडंतउक्का-सहस्सदिप्पंतविजुज्जालहुयवहणिधूमजलिय णिद्धंत धोयतत्त तवणिज्ज किंसुयासोय जावासुयणकुसुमविमउलिय पुंजमणिरयण किरण जच्चहिंगुलुय णिगररूवाइरेगरूवा तहेव ते जोइसिहा वि दुमगणा अणेग बहुविविह विससा परिणयाए उज्जोयविहीए उववेया सुहलेस्सा मंदलेस्सा मंदायवलेस्सा कूडाय इव ठाणठिया अण्णमण्ण समोगाढाहिं लेस्साहिं साए पभाए सपएसे सव्वओ समंता ओभासंति उज्जोवेंति पभासेंति कुसविकुसविसुद्ध रुक्खमूला जाव चिटुंति ५॥ ___ कठिन शब्दार्थ - जोइसिहा - ज्योतिशिखा-सूर्य के समान ज्योति (प्रकाश) देने वाले, अग्नि का काम देने वाले, अच्चिरुग्गय सरय सूरमंडल घडंत उक्का सहस्स दिप्पंत विजुयालहुय वह णिधूमजलिय णिद्धंत धोयतततवणिज्ज किंसुयासोयजवाकुसुमविमुउलिय पुंजमणिरयण किरण जच्चहिंगुलुय णिगररुवाइरेगरूवा - अचिरोद्गत-तत्कालोदित शरत्सूर्य मण्डल पतदुल्कासहस्र दीप्यमान विद्युज्जालहुतवह निधूमज्वलित निर्मातद्योत तप्त तपनीय किंशुका शोकजपाकुसुम विमुकुलित पुंजमणिरत्न किरण जात्यहिंगुलक निकररूपातिरेक रूपा:-तत्काल उदित हुआ शरत् कालीन सूर्यमण्डल, गिरती हुई हजार उल्काएं, चमकती हुई बिजली, ज्वाला सहित निर्धूम प्रदीप्त अग्नि, अग्नि से शुद्ध हुआ तप्त तपनीय सुवर्ण, विकसित हुए किंशुकपुष्पों, अशोक पुष्पों और जपापुष्पों का समूह, मणि रत्न की किरणें, श्रेष्ठ हिंगलु का समुदाय अपने अपने रूपों से अधिक सुहावना तेजस्वी लगता है, ओभासंति - प्रकाशित करते हैं, उज्जोवेंति - उद्योतित करते हैं, पभाति - प्रभासित करते हैं।
भावार्थ - हे आयुष्मन् श्रमण! एकोरुक द्वीप में स्थान स्थान पर बहुत से ज्योतिशिखा वृक्ष हैं। जैसे तत्काल उदित हुआ शरत्कालीन सूर्य मण्डल, गिरती हुई हजार उल्काएं, चमकती हुई बिजली, ज्वाला सहित निर्धूम प्रदीप्त अग्नि, अग्नि से शुद्ध हुआ तप्त तपनीय स्वर्ण, विकसित हुए किंशुक के पुष्पों, अशोक के पुष्पों और. जपा के पुष्पों का समूह, मणिरत्न की किरणें, श्रेष्ठ हिंगलु का समुदाय अपने अपने वर्ण एवं आभा रूप से तेजस्वी लगते हैं वैसे ही वे ज्योतिशिखा वृक्ष अपने बहुत प्रकार के अनेक विस्रसा (स्वाभाविक) परिणाम से उद्योतविधि (प्रकाश) से युक्त होते हैं। उनका प्रकाश सुखकारी है,
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org