Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 325
________________ ३०८ जीवाजीवाभिगम सूत्र **************************************************************¤¤¤¤¤¤¤¤*************************************** कठिन शब्दार्थ - मणियंगा - मण्यङ्गा-आभूषण का काम देने वाले, हारद्धहार - हार (अठारह. लडियों वाला) अर्धहार (नौ लडियों वाला), वट्टणग- वर्त्तनक:- कर्ण का आभूषण विशेष, मउडकुंडलमुकुट, कुण्डल, वामुत्तग- वामोत्तक - ( छिद्र - जाली वाला आभूषण), सुत्तग - सूत्रक- स्वर्ण सूत्र, उच्चिइय कडगा - उच्चयित कटकानि - उठा हुआ कडा या चूड़ी, खुडिय क्षुद्रिका - अंगूठी, एगावलि - एकावली - मणियों की एक सूत्री माला, कंठसुत्तमंगरिम- कण्डसूत्रं मकरिका कण्डसूत्र, मकराकार आभूषण विशेष, उरत्थ - उर: स्कंध गेवेज्ज ग्रैवेयक - गले का आभूषण, सोणिसुत्तग- श्रोणी सूत्रकंदौरा, चूलामणि- चूडामणि (मस्तक का आभूषण), कणगतिलग = स्वर्ण तिलक, फुल्ल फुल्लक- फूल के आकार का ललाट का आभूषण, सिद्धत्थय सिद्धार्थक-सर्षप प्रमाण सोने के दानों से बना आभरण, कण्णवालि - कर्णपाली ( लटकन), ससिसूरउसभ शशि सूर्य ऋषभाः स्वर्णमय चन्द्र, सूर्य और वृषभ के आकार के आभूषण, चक्कंग - चक्राकार आभूषण विशेष, तलभंगतुडिय - तल भंगक त्रुटि-भुजा का आभूषण- भुजबंद, हत्थिमालग - हस्तमालक-मालाकार हाथ का भूषण, वलक्ख- वलक्ष-गले का भूषण, दीणारमालिया - दीनारमालिका-दीनार की आकृति की मणिमाला, हरिसयकेऊरवलयपालंब - हर्षक (भूषण विशेष) केयूर वलय (ककण) प्रालम्बनक (झूमका) अंगुलेज्जग-कंचीमेहला कलाव पयरग (पाडिहारिय) पायजालघंटिय खिंखिणी रयणोरु - जालत्थिमियवरणेउर चलणमालिया - अंगुलीयक (मुद्रिका - अंगूठी) काञ्ची, मेखला, कलाप, प्रतरक (प्रातिहारिक) पांव में पहने जाने वाले घुंघरु किंकिणी (बिच्छुडी), रत्नमय कंदौरा, नुपूर चरणमालिका, कणगणिगरमालिया - कनकनिकरमालिका, कंचणमणिरयणभत्तिचित्ता कंचन, मणि और रत्नों से चित्रित, भूसणविही- भूषणविधि । भावार्थ - हे आयुष्मन् श्रमण। एकोरुक द्वीप में स्थान स्थान पर बहुत से मण्यंगा नामक वृक्ष हैं। जैसे हार, अद्धहार, वर्त्तनक (कान का भूषण), मुकुट, कुण्डल, वामोत्तक, हेमजाल, मणिजाल, कनकजाल, सूत्रक (स्वर्णसूत्र), उच्चयित कटक, मुद्रिका, एकावली, कण्ठसूत्र मकराकार आभूषण, उरःस्कन्ध, ग्रैवेयक, श्रेणीसूत्र, चूडामणि, स्वर्ण तिलक (टीका), फूल के आकार का ललाट का आभूषण, सिद्धार्थक, कर्णपाली, चन्द्र-सूर्य और वृषभ के आकार के आभूषण, चक्राकार आभूषण, भुजबंद, माला के आकार का हस्त का आभूषण, वलक्ष, दीनाकार मणिमाला, चन्द्रसूर्य मालिका, हर्षक, केयूर, वलय, प्रालम्बनक, अंगुलीयक (मुद्रिका) काञ्ची, मेखला, कलाप, प्रतरक, प्रातिहारिक, घूंघरु, किंकणी, रत्न का कंदोरा, नुपूर, चरणमालिका, कनकनिकरमाला, कंचनमणिरल, आदि की रचना चित्रित और बहुत प्रकार के सुंदर आभूषण हैं उसी तरह मण्यंगा वृक्ष भी नाना प्रकार के विस्रसा परिणाम से परिणत होकर विविध भूषणों से युक्त हैं। वे कुश कास आदि से रहित मूल वाले हैं और शोभा से अतीव अतीव शोभायमान हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only - www.jalnelibrary.org

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