Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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जीवाजीवाभिगम सूत्र
वा इट्टयागणीइ वा कवेल्लुयागणीइ वा लोहारंबरिसेइ वा जंतवाडचुल्लीइ वा हंडिय लित्थाणि वा गोलियलित्थाणि वा सोंडियलित्थाणि वा णलागणीइ वा तिलागणीइ वा तुसागणीइ वा, तत्ताई समजोईभूयाइं फुल्लकिंसुयसमाणाई उक्कासहस्साई विणिम्मुयमाणाइं जालासहस्साई पमुच्चमाणाइं इंगालसहस्साइं पविक्खरमाणाइं अंतो अंतो हुहुयमाणाइं चिटुंति ताई पासइ ताई पासित्ता ताई ओगाहइ ताई ओगाहित्ता से णं तत्थ उण्हे पि पविणेज्जा तण्हं पि पविणेज्जा खहं पि पविणेज्जा जरं पि पविणेज्जा दाहं पि पविणेज्जा णिहाएज्ज वा पयलाएज्ज वा सई वा रइं वा धिइं वा मई वा उवलभेज्जा, सीए सीयभूए संकसमाणे संकसमाणे वा सायासोक्खबहुले यावि विहरेज्जा भवेयारूवे सिया? णो इण? समटे गोयमा! उसिणवेयणिज्जेसु.णरएसु णेरइया एत्तो अणिद्वतरियं चेव उसिणवेयणं पच्चणुभवमाणा विहरंति॥
कठिन शब्दार्थ - मत्तमातंगे - मदोन्मत्त हस्ती, कुंजरे - कुंजर (हाथी), सट्ठिहायणे - साठ वर्ष का, पढमसरपकालसमयसि - प्रथम शरत्काल के समय में, चरमणिदायकाल समयसि - निदाघ-ग्रीष्म ऋतु के चरम-अंतिम समय में, उण्हाभिहए - उष्णाभिहत-गर्मी से तप्त होकर, तण्हाभिहए - तृषाभिहत--प्यास से आकुल व्याकुल, सुसिए - शुषितः-जिसके कण्ठ और तालु दोनों सूख गये हैं पिवासिए - पिपासित-तृषा वेदना से पीडित, दुब्बले - दुर्बल, किलते - क्लान्त, पुक्खरिणिं - पुष्करिणी को, अणुपुण्यसुजायवप्पगंभीरसीयलजलं - जो क्रमशः गहरी होती गई है जिसका जल स्थान अथाह (गंभीर) है, जिसका जल शीतल है, संघण्णपत्तभिसमुणालं - कमलपत्र कंद और मृणाल से ढंकी हुई, बहुउप्पलकुमुदणलिण-सुभग-सोगंधियपुंडरीय महापुंडरीय सयपत्त सहस्सपत्त, केसरफुल्लोवचियं - बहुत से खिले हुए केसर प्रधान उत्पल, कुमुद, नलिन, सुभग, सौगंधिक, पुण्डरीक, महापुण्डरीक, शतपत्र, सहस्रपत्र आदि कमलों से युक्त, छप्पयपरिभुज्जमाणकमल - कमलों पर भ्रमर रसपान कर रहे हैं, परिहत्यभमंतमच्छकच्छभं - बहुत से मच्छ कच्छप इधर उधर घूम रहे हों, अच्छविमलसलिलपुण्णं - स्वच्छ और निर्मल जल से भरी हुई, अणेगसउणगण मिहुणयविरइय सदुण्णइयमहुरंसरणाइयं - अनेक पक्षियों के जोडों के चहचहाने के मधुर स्वर से शब्दायमान पविणेज्जा - प्रविनयेत्-शांत कर लेता है, सई - स्मृति को, रई - रति को, धिई - धृति-धैर्य को गोलियालिंगाणि - गुड पकाने की भट्टी, फुल्लकिंसुयसमाणाई - पलाश के फूलों की तरह लाल, उक्कासहस्साई - हजारों उल्काओं को, जालासहस्साई - हजारों ज्वालाओं को, पविक्खरमाणाईबिखेर रहे हों, णिहाएज्ज - निद्रा लेता है, पयलाएज्ज - प्रचला-खडे खडे ऊंघ लेता है।
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