Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तृतीय प्रतिपत्ति - द्वितीय तिर्यंचयोनिक उद्देशक - पृथ्वीकायिकों का वर्णन
उत्तर - हे गौतम! जघ्रन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट बारह हजार वर्ष की स्थिति शुद्ध पृथ्वी की है। प्रश्न - हे भगवन् ! बालुका पृथ्वी की पृच्छा ?
उत्तर - हे गौतम! बालुका पृथ्वी की स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट चौदह हजार वर्ष है।
प्रश्न - हे भगवन् ! मनःशिला पृथ्वी की पृच्छा ?
उत्तर - हे गौतम! जघन्य अंतर्मुहूर्त्त उत्कृष्ट सोलह हजार वर्ष ।
प्रश्न - हे भगवन्! शर्कराप्रभा पृथ्वी की पृच्छा ?
उत्तर - हे गौतम! जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट अठारह हजार वर्ष ।
प्रश्न - हे भगवन् ! खर पृथ्वी की स्थिति कितने काल की कही गई हैं ?
उत्तर - हे गौतम! खर पृथ्वी की स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट बावीस हजार वर्ष की है।
विवेचन प्रस्तुत सूत्र में पृथ्वी छह प्रकार की कहीं गई है -
१. श्लक्ष्ण पृथ्वी - चूर्णित आटे के समान मुलायम पृथ्वी ।
२. शुद्ध पृथ्वी पर्वत आदि के मध्य में जो मिट्टी होती है वह शुद्ध पृथ्वी है.
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३. बालुका पृथ्वी - बारीक रेत बालुका पृथ्वी है ।
४. मनःशिला पृथ्वी - मैनशिल आदि मनःशिला पृथ्वी है।
५. शर्करा पृथ्वी - कंकर, मुरुण्ड आदि शर्करा पृथ्वी है। ६. खर पृथ्वी - कठोर पाषाण रूप पृथ्वी खर पृथ्वी है। इन पृथ्वियों की कालस्थिति इस प्रकार कही गई है
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श्लक्ष्ण पृथ्वी की स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट एक हजार वर्ष | शुद्ध पृथ्वी की स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट बारह हजार वर्ष । बालुका पृथ्वी की स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट चौदह हजार वर्ष । मनःशिला पृथ्वी की स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट सोलह हजार वर्ष । शर्करा पृथ्वी की स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट अठारह हजार वर्ष । खर पृथ्वी की स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट बावीस हजार वर्ष । रयाणं भंते! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?
गोयमा ! जहण्णेणं दस वाससहस्साइं उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं ठिइं, एवं सव्वं भाणियव्वं जाव सव्वट्ठसिद्ध देव त्ति ॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! नैरयिकों की स्थिति कितने काल की कही गई है ?
उत्तर - हे गौतम! नैरयिकों की स्थिति जघन्य दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की
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