Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
तृतीय प्रतिपत्ति - द्वितीय तिर्यंचयोनिक उद्देशक - अविशुद्ध लेशी - विशुद्ध लेशी अनगार २९१
उत्तर - हाँ, गौतम ! जानता देखता है।
विवेचन प्रस्तुत सूत्र में अशुद्ध लेश्या वाले और विशुद्ध लेश्या वाले अनगार को लेकर ज्ञान दर्शन विषयक प्रश्न किये गये हैं । अविशुद्ध लेश्या से तात्पर्य कृष्ण लेश्या, नील लेश्या और कापोत श्या से है। विशुद्ध लेश्या से तात्पर्य तेजोलेश्या, पद्मलेश्या और शुक्ल लेश्या से है। समवहत का अर्थ है - वेदना आदि समुद्घात से युक्त होना और असमवहत का अर्थ है - वेदना आदि समुद्घात से रहित। समवहत-असमवहत का अर्थ है - वेदना आदि समुद्घात से न तो पूर्णतया युक्त है और न पूर्णतया रहित । अविशुद्ध लेश्या वाले अनगार के विषय में छह आलापक इस प्रकार कहे गये हैं
-
१. असमवहत होकर अविशुद्ध लेश्या वाले देव, देवी और अनगार को जानना देखना २. असमवहत होकर विशुद्ध लेश्या वाले देव, देवी और अनगार को जानना देखना ३. समवहत होकर अविशुद्ध लेश्या वाले देव, देवी और अनगार को जानना देखना ४. समवहत होकर विशुद्ध लेश्या वाले देव, देवी और अनगार को जानना देखना ५. समवहत-असमवहत होकर अविशुद्ध लेश्या वाले देव, देवी और अनगार को जानना देखना ६. समवहत-असमवहत होकर विशुद्ध लेश्या वाले देव, देवी और अनगार को जानना देखना । उपरोक्त छह आलापकों में अविशुद्ध लेश्या वाले अनगार के जानने देखने का निषेध किया गया है क्योंकि अविशुद्ध लेश्या वाला होने से उसका ज्ञान और दर्शन व्यवस्थित नहीं होता है अतः वह किसी को सम्यक् रूप से जानता देखता नहीं है। विशुद्ध लेश्या वाले अनगार के लिए भी उपरोक्तानुसार छह आलापक कह देने चाहिये किंतु विशुद्ध लेश्या वाला होने से उसका यथावस्थित ज्ञान दर्शन होता है अतः वह देवादि पदार्थों को सम्यक् रूप जानता देखता है। मूल टीका में भी विशुद्ध लेश्या वाले के लिए कहा है " शोभनमशोभनं वा वस्तु यथावद् विसुद्धलेश्यो जानाति । समुद्घातोऽपि तस्याप्रतिबन्धक एव । "..
अर्थात् विशुद्ध लेश्या वाला शोभन या अशोभन वस्तु को यथार्थ रूप में जानता है। समुद्घात भी उसका प्रतिबन्धक नहीं होता।
यहां पर अविशुद्ध लेश्या में लेश्या अशुभ (कृष्ण आदि तीन) होने से स्वयं का देखना सही नहीं होने से जानता देखता नहीं है। समुद्घात अवस्था जानने देखने में प्रतिबन्धक ( रुकावट करने वाली ) नहीं होती है। लेश्या से तो प्रतिबन्धकता होती है जैसे अस्थिर पानी में चन्द्रमा का प्रतिबिम्ब बराबर दिखाई नहीं देता है वैसे ही अशुभ लेश्याओं में पदार्थों का यथार्थ ज्ञान नहीं होता है।
यहां पर अणगार (अनगार) शब्द से प्रथम गुणस्थान वाले भावित आत्मा अनगार अन्यतीर्थी भी समझ सकते हैं। विशुद्ध लेश्या वाले देव - देवी को भी विशष्टि अवधिज्ञान वाले अनगार ही जानते हैं। छोटे अवधिज्ञान वाले नहीं जानते हैं। तेजो आदि तीन शुभ लेश्याओं में साधु में शुभ योग ही होने की संभावना है।
Jain Education International
-
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org