Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तृतीय प्रतिपत्ति - प्रथम तिर्यंचयोनिक उद्देशक - हरितकाय और हरितकायशत
२७७
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! वल्लियां और वल्लिशत कितने प्रकार के कहे गये हैं? उत्तर - हे गौतम! चार प्रकार की वल्लियां और चार वल्लिशत कहे गये हैं। प्रश्न - हे भगवन्! लताएं और लताशत कितने प्रकार के कहे गये हैं ? उत्तर - हे गौतम! आठ प्रकार की लताएं और आठ लताशत कहे गये हैं।
विवेचन - मूल रूप से वल्लियों के चार प्रकार हैं और अवान्तर जाति भेद से चार सौ प्रकार हैं। किंतु इनकी स्पष्टता उपलब्ध नहीं है। लतां के मूल भेद आठ और आठ सौ उपजातियाँ हैं।
. हरितकाय और हरितकायशत कइणं भंते! हरियकाया हरियकायसया पण्णत्ता?
गोयमा! तओ हरियकाया तओ हरियकायसया पण्णत्ता, फलसहस्सं च बिंटबद्धाणं फलसहस्सं च णालबद्धाणं, ते सव्वे वि हरियकायमेव समोयरंति, ते एवं समणुगम्ममाणा समणुगम्ममाणा एवं समणुगाहिजमाणा समणुगाहिज्जमाणा एवं समणुपेहिज्जमाणा समणुपेहिज्जमाणा एवं समणुचिंतिज्जमाणा समणुचिंतिज्जमाणा एएसु चेव दोसु काएसु समोयरंति, तं जहा - तसकाए चेव थावरकाए चेव, एवामेव सपुव्वावरेणं आजीवियदिढ़तेणं चउरासीइ जाइकुलकोडीजोणीपमुहसयसहस्सा भवंतीति मक्खाया॥९८॥ .. कठिन शब्दार्थ - समणुगम्ममाणा - समनुगम्यमाना-स्वयं समझे जाने पर, समणुगाहिज्जमाणासमनुग्राह्यमाणाः-दूसरों से समझाए जाने पर, समणुपेहिग्जमाणा - समनुप्रेष्यमाणा:-पर्यालोचन किये जाने पर, समणुचिंतिज्जमाणा - समनुचिन्त्यमानाः-चिंतन किये जाने पर, समोयरंति - समवतरन्तिसमाविष्ट होते हैं। . .."
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! हरितकाय और हरितशत कितने कहे गये हैं ?
उत्तर - हे गौतम! हरितकाय तीन प्रकार के और हरितशत भी तीन प्रकार के कहे गये हैं। बिंटबद्ध फल के हजार भेद और नालबद्ध फल के हजार भेद, ये सभी हरितकाय में समाविष्ट हैं। इस प्रकार सूत्र के द्वारा स्वयं समझे जाने पर, दूसरों के द्वारा सूत्र से समझाये जाने पर, युक्तियों द्वारा पर्यालोचन करने पर और अर्थालोचन के द्वारा चिंतन किये जाने पर ये सभी दो कायों-त्रस काय और स्थावर काय-में समाविष्ट होते हैं। इस प्रकार पूर्वापर विचारणा करने पर समस्त संसारी जीवों की आजीविक दृष्टान्त से चौरासी लाख योनि प्रमुख जातिकुलकोडी होती है, ऐसा जिनेश्वर भगवंतों ने कहा है। .
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