Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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जीवाजीवाभिगम सूत्र
. मुख्य रूप से सात गंधांग कहे गये हैं जो इस प्रकार हैं - १. मूल २. त्वक् ३. काष्ठ ४. निर्यास ५. पत्र ६. फूल और ७. फल।
यहां मूल से मुस्ता, वालुका, उसिर आदि, त्वक् से सुवर्ण छाल आदि, काष्ठ से चन्दन, अगुरु आदि, निर्यास से कपूर आदि, पत्र से जातिपत्र तमालपत्र आदि, पुष्प से प्रियंगु, नागर आदि और फल से जायफल, इलायची, लौंग आदि का ग्रहण हुआ है।
इन सात गंधांगों की सात सौ उपजातियाँ इस प्रकार होती हैमूल तयकट्ठनिज्जास पत्तपुप्फप्फल मेय गंधगा। वण्णादुत्तरभेया गंधंगसया मुणेयव्वा॥१॥ इसकी व्याख्या रूप दो गाथाएं टीका में इस प्रकार कही गई है - मुत्था सुवण्णछल्ली अगुरुवाला तमालपत्तं च। तह य पियंगू जाईफलं च जाइए गंधगा।।१।। गुणणाए सत्त सया पंचहिं वण्णेहिं सुरभिगंधेणं। रसपणएणं तह फासेहि य चउहि मित्ते(पसत्थे)हिं॥२॥
मूल त्वक् आदि सात गंधांगों को पांच वर्षों से गुणा करने पर ३५ भेद हुए। ये सुरभिगंध वाले ही होते हैं अतः (३५४१-३५) पैंतीस हुए। एक एक वर्ण भेद में पांच रस पाये जाते हैं अतः ३५४५-१७५ एक सौ पिचहत्तर भेद हुए। वैसे तो स्पर्श आठ होते हैं किंतु इन गंधांगों में चार प्रशस्त (मृदु-लघुशीत-उष्ण) स्पर्श पाते हैं अतः १७५४४-७०० सात सौ अवान्तर जातियां होती हैं। ___ जल में उत्पन्न होने वाले कमल आदि फूलों की चार लाख कुलकोटि है, स्थल में उत्पन्न होने वाले कोरण्ट आदि फूलों की चार लाख कुलकोटि है। महुआ आदि महावृक्षों के फूलों की चार लाख कुलकोटि है और जाती आदि महागुल्मिक फूलों की चार लाख कुलकोटि है। इस प्रकार फूलों की सोलह लाख कुलकोटियां कही गई हैं।
. वल्लियाँ और वल्लिशत करणं भंते! बल्लीओ कइ वल्लिसवा पण्णता? गोयमा! यतारिवल्लीओ चत्तारि वल्लीसया पण्णत्ता।
. लताएं और लताशत करणं भंते! लयाओ कइ लयासया पण्णत्ता? गोयमा! अट्ठ लयाओ अट्ठलयासया पण्णत्ता
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