Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
तृतीय प्रतिपत्ति - प्रथम तिर्यंचयोनिक उद्देशक - विमानों की महत्ता
स्वस्तिककांत, स्वस्तिकवर्ण, स्वस्तिकलेश्य, स्वस्तिकध्वज, स्वस्तिक श्रृंगार, स्वस्तिक कूट, स्वस्तिक शिष्ट और स्वस्तिकोत्तरावतंसक नामक विमान है ?
उत्तर - हाँ गौतम ! स्वस्तिक नाम वाले आदि विमान हैं।
विवेचन प्रस्तुत सूत्र में विमान के विषय में प्रश्नोत्तर है। टीकाकार ने विमान शब्द की व्युत्पत्ति इस प्रकार की है.
-
-
'विशेषतः पुण्यप्राणिभिर्मन्यन्ते तद्गतसौख्यानुभवनेनानुभूयन्ते इति विमानानि' - जहां विशेष रूप से पुण्यशाली जीवों के द्वारा तद्गत सुखों का अनुभव किया जाता है वे विमान हैं।
विमानों के नामों में यहां 'सोत्थियाई' - स्वस्तिक आदि पाठ है जबकि टीकाकार ने 'अच्चियाई' अर्चि आदि पाठ मान कर व्याख्या की है। इस प्रकार नामों में अंतर है।
विमानों की महत्ता
ते णं भंते! विमाणा के महालया पण्णत्ता ?
गोयमा ! जावइए णं सूरिए उदेइ जावइए णं च सूरिए अत्थमइ एवइया तिण्णोवासंतराइं अत्थेगइयस्स देवस्स एगे विक्कमे सिया, से णं देवे ताए उक्किट्ठाए तुरियाए जाव दिव्वाए देवगईए वीईवयमाणे वीईमयमाणे जाव एगाहं वा दुयाहं वा उक्कोसेणं छम्मासा वीईवएज्जा, अत्थेगइया विमाणं वीईवएज्जा अत्थेगइया विमाणं णो वीईवएज्जा, एमहालया णं गोयमा ! ते विमाणा पण्णत्ता ।
A
कठिन शब्दार्थ - उदेइ - उदित होता है, अत्थमइ अस्त होता है, तिण्णोवासंतराई - तीन अवकाशान्तरं प्रमाण, विक्कमे विक्रम (पदन्यास) ।
भावार्थ- प्रश्न - हे भगवन् ! वे विमान कितने बड़े हैं ?
उत्तर - हे गौतम! जितनी दूरी से सूर्य उदित होता है और जितनी दूरी से सूर्य अस्त होता है, यह एक अवकाशान्तर है। ऐसे तीन अवकाशान्तर प्रमाण क्षेत्र किसी देव का एक विक्रम (पद न्यास) हो और वह देव उस उत्कृष्ट त्वरित यावत् दिव्य देवगति से चलता हुआ यावत् एक दिन, दो दिन उत्कृष्ट छह मास तक चलता रहे तो वह किसी विमान का तो पार पा सकता है और किसी विमान का पार नहीं पा सकता है। हे गौतम! इतने बड़े वे विमान कहे गये हैं ।
२७९
Jain Education International
-
विवेचन प्रस्तुत सूत्र में विमानों की महत्ता बताने के लिये देव की उपमा का सहारा लिया गया है।
जम्बूद्वीप में सर्वोत्कृष्ट दिन में कर्क संक्रांति के प्रथम दिन में सूर्य सैंतालीस हजार दो सौ त्रेसठ योजन और एक योजन के साठिया इक्कीस भाग (४७२६३ - -) जितनी दूरी से उदित होता है यह
२१
६०
-
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org