Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तृतीय प्रतिपत्ति - प्रथम तिर्यंचयोनिक उद्देशक - द्वार प्ररूपणा
भुयपरिसप्प थलयर पंचेंदिय तिरिक्खजोणियाणं भंते! कइविहे जोणी संग
पण्णत्ते ?
गोयमा ! तिविहे जोणीसंगहे पण्णत्ते, तं जहा अंडया पोयया संमुच्छिमा, एवं जहा खहयराणं तहेव णाणत्तं जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं पुव्वकोडी, उव्वट्टित्ता दोच्चं पुढविं गच्छंति, णव जाईकुलकोडी जोणीपमुह सयसहस्सा भवतीति मक्खायं, सेसं तहेव ॥
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भावार्थ प्रश्न - हे भगवन् ! भुजपरिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों का योनि संग्रह कितने प्रकार का कहा गया है ?
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उत्तर - हे गौतम! भुजपरिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों का योनि संग्रह तीन प्रकार का कहा गया है वह इस प्रकार है- अण्डज, पोतज और सम्मूर्च्छिम । जिस प्रकार खेचरों के विषय में कहा, उसी प्रकार यहां भी कहना चाहिये । विशेषता यह है कि इनकी स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त और... उत्कृष्ट पूर्वकोटि है, मर कर यदि नरक में जावे तो दूसरी पृथ्वी तक जाते हैं। इनकी नौ लाख जातिकुलकोडी हैं। शेष वर्णन पूर्वानुसार जानना चाहिये ।
उरगपरिसप्प थलयर पंचिंदिय तिरिक्खजोणियाणं भंते! पुच्छा, जहेव भुयपरिसप्पाणं तहेव, णवरं ठिई जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं पुव्वकोडी, उव्वट्टित्ता जाव पंचमिं पुढविं गच्छंति, दस जाईकुलकोडी० ।
भावार्थ - प्रश्न हे भगवन्! उरपरिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों का योनि संग्रह कितने प्रकार का कहा गया है ? इत्यादि प्रश्न ?
उत्तर - हे गौतम! जिस प्रकार भुजपरिसर्प का कथन किया गया है उसी प्रकार यहां भी कह देना चाहिये। विशेषता यह है कि स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटि है। मरकर यदि नरक में जावे तो पांचवीं पृथ्वी तक जाते हैं। इनकी दस लाखं जातिकुलकोडी है ।
चउप्पय थलयर पंचेंदिय तिरिक्खजोणियाणं पुच्छा ?
गोयमा! दुविहे (जोणीसंगहे) पण्णत्ते, तं जहा - पोयया य संमुच्छिमा य ।
से किं तं पोयया ?
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पोयया तिविहा पण्णत्ता, तं जहा - इत्थी पुरिसा प्णपुंसगा, तत्थ णं जे ते सम्मुच्छिमा ते सव्वे णपुंसया ।
भावार्थ - चतुष्पद स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचों का योनिसंग्रह कितने प्रकार का कहा गया है ?
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