Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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जीवाजीवाभिगम सूत्र
कठिन शब्दार्थ - जोणिसंगहे - योनि संग्रह-योनि (जन्म) को लेकर किया गया भेद, अंडया - अण्डज-अण्डे से उत्पन्न होने वाले जैसे मोर आदि, पोयया - पोतज-पोत से उत्पन्न होने वाले-गर्भ से निकलते ही दौड़ने वाले-चमगादड आदि, संमुच्छिमा - सम्मूर्च्छिम-माता पिता के संयोग बिना उत्पन्न होने वाले, खंजरीट आदि।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिकों का योनिसंग्रह कितने प्रकार का कहा गया है?
उत्तर - हे गौतम! खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचों का योनिसंग्रह तीन प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार है- अण्डज, पोतज और सम्मूर्च्छिम। अण्डज तीन प्रकार के कहे गये हैं - स्त्री, पुरुष
और नपुंसक। पोतज तीन प्रकार के कहे गये हैं - स्त्री, पुरुष और नपुंसक। सम्मूछिम सब नपुंसक ही होते हैं।
विवेचन - खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचों का योनिसंग्रह (जन्म की अपेक्षा भेद) तीन प्रकार का कहा गया है - अण्डज, पोतज और सम्मूर्च्छिम। वैसे सामान्यतया चार प्रकार का योनिसंग्रह कहा है - १. जरायुज २. अण्डज ३. पोतज और ४. सम्मूर्च्छिम, किंतु पक्षियों में जरायुज होते ही नहीं है अत: यहां तीन प्रकार का योनि संग्रह कहा गया है। अण्डज और पोतज स्त्री, पुरुष और नपुंसक इन तीनों लिंगों वाले होते हैं, जबकि सम्मूर्छिम नपुंसक ही होते हैं।
द्वार प्ररूपणा एएसिणं भंते! जीवाणं कइ लेसाओ पण्णत्ताओ? . . गोयमा! छल्लेसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - कण्हलेसा जाव सुक्कलेसा। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! इन जीवों-पक्षियों में कितनी लेश्याएं कही गई है? उत्तर - हे गौतम! पक्षियों में छह लेश्याएं कही गई हैं। यथा - कृष्णलेश्या यावत् शुक्ल लेश्या। विवेचन - पक्षियों में द्रव्य और भाव की अपेक्षा छहों लेश्याएं संभव है। ते णं भंते! जीवा किं सम्मदिट्ठी मिच्छादिट्ठी सम्मामिच्छादिट्ठी? गोयमा! सम्मदिट्ठी वि मिच्छादिट्ठी वि सम्मामिच्छादिट्ठी वि। तेणं भंते! जीवा किंणाणी अण्णाणी? , गोयमा! णाणी वि अण्णाणी वि तिण्णी णाणाइं तिण्णि अण्णाणाइं भयणाए। ते णं भंते! जीवा किं मणजोगी वइजोगी कायजोगी? गोयमा! तिविहा वि।
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