Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तृतीय प्रतिपत्ति - द्वितीय नैरयिक उद्देशक - नरकों में उपपात
भावार्थ:- इस उद्देशक में निम्न विषयों का प्रतिपादन हुआ है - पृथ्वियों की संखः लिने क्षेत्र में नरकावास हैं, नरकों के संस्थान, मोटाई विष्कम्भ, परिक्षेप (लम्बाई चौड़ाई और परिधि) वर्ण, गंध, स्पर्श, नरकों की विस्तीर्णता बताने हेतु देव की उपमा, जीव और पुद्गलों की उनमें व्युत्क्रांति, शाश्वत अशाश्वत प्ररूपणा, उपपात, एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं, अपहार, उच्चत्व, नैरयिकों के संहनन, संस्थान, वर्ण, गंध, स्पर्श, उच्छ्वास, आहार, लेश्या, दृष्टि, ज्ञान, योग, उपयोग, समुद्घात, भूख-प्यास, विकुर्वणा, वेदना, भय, पांच महापुरुषों का सातवीं नरक पृथ्वी में पकात में उपपात, दो प्रकार की वेदना, शीत वेदना, स्थिति, उद्वर्तना, पृथ्वी का स्पर्श उपप 1
वेदना
- उष्ण
विवेचन - प्रस्तुत उद्देशक में नरकों के विषय में जो जो बातें कही गई हैं उनका उपरोक्त संग्रहणी गाथाओं में कथन किया गया है। इस उद्देशक में नीचे लिखे विषय बताये गये हैं
५ पृथ्वियों (नरकों) के नाम तथा गोत्र २. नरकावासों का स्वरूप तथा अवगाहना ३. नरकावासों का संस्थान ४. बाहल्य अर्थात् मोटाई ५. आयाम (लम्बाई) विष्कम्भ (चौड़ाई) और परिक्षेप (परिधि) ६. वर्ण, गंध, स्पर्श ७ः असंख्यात योजन वाले नरकावासों के विस्तार के लिये उपमा ८. जीव और पुद्गलों की व्युत्क्रांति ९. शाश्वत अशाश्वत १०. उपपात अर्थात् किस नरक में कौन से जीव उत्पन्न होते हैं ११. एक समय में कितने जीव उत्पन्न होते हैं तथा कितने मरते हैं १२. नारकी जीवों की VC VIK SIFTE PRITE १६. आहार DTE IFF
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अवगाहना १३. संहनन १४. संस्थान १५. नारकी जीवों का वर्ण, गंध, स्पर्श तथा अर्थात् भूख
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१७. लेश्या १८. दृष्टि १९. ज्ञान २०. योग २१. उपयोग २२. समुद्घात २३, क्षुधा और तुषा और प्यास २४. विक्रिया २५. वेदना और भय २६. उष्ण वेदना शीत वेदना २७. स्थिति २८. २९. पृथ्वियों का स्पर्श ३० उपपात ।
उद्वर्तना
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॥ द्वितीय नैरयिक उद्देशक समाप्त ॥
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