Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तृतीय प्रतिपत्ति - द्वितीय नैरयिक उद्देशक - नरक पृथ्वियों की अपेक्षा से मोटाई आदि २५३
इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए णेरड्या केरिसयं आउफासं पच्चणुभवमाणा विहरंति?
गोयमा! अणिटुं जाव अमणामं एवं जाव अहेसत्तमाए, एवं जाव वणप्फइफासं अहेसत्तमाए पुढवीए।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के नैरयिक किस प्रकार के पृथ्वी स्पर्श का अनुभव करते हैं?
उत्तर - हे गौतम! रत्नप्रभा पृथ्वी के नैरयिक अनिष्ट यावत् अमनाम पृथ्वी स्पर्श का अनुभव करते हैं। इसी प्रकार अधःसप्तम पृथ्वी तक कह देना चाहिये।
प्रश्न - हे भगवन्! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के नैरयिक किस प्रकार के अप्स्पर्श का अनुभव करते हैं?
उत्तर - हे गौतम! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के नैरयिक अनिष्ट यावत् अमनाम अप् (जल) स्पर्श का अनुभव करते हैं। इसी प्रकार अधःसप्तम पृथ्वी तक कह देना चाहिये। इसी प्रकार यावत् वनस्पति के स्पर्श के विषय में यावत् अधःसप्तम पृथ्वी के नैरयिकों के विषय में समझना चाहिये।
विवेचन - नैरयिक जीवों को नरकों में तनिक भी सुख के निमित्त नहीं है अत: नरक पृथ्वियों के भूमि स्पर्श, जल स्पर्श, तेजस स्पर्श, वायु स्पर्श और वनस्पति स्पर्श अनिष्ट, अकांत, अप्रिय, अमनोज्ञ
और अमनाम होते हैं। नरकों में साक्षात् बादर तेऊकाय तो नहीं होती है किंतु उष्ण रूपता में परिणत नरक भित्तियों का स्पर्श तथा दूसरों के द्वारा किये वैक्रिय रूप का उष्ण स्पर्श तेजःस्पर्श समझना चाहिये।
नरक पृथ्वियों की अपेक्षा से मोटाई आदि इमा णं भंते! रयणप्पभा पुढवी दोच्चं पुढविं पणिहाय सव्वमहंतिया बाहल्लेणं सव्वखुड्डिया सव्वंतेसु?
हंता गोयमा! इमा णं रयणप्पभा पुढवी दोच्च पुढवि पणिहाय जाव सव्वखुड्डिया सव्वंतेसु। - दोच्चा णं भंते! पुढवी तच्चं पुढविं पणिहाय सबमहंतिया बाहल्लेणं पुच्छा?
हंता गोयमा! दोच्चा णं पुढवि जाव सव्वखुड्डिया सव्वंतेसु एवं एएणं अभिलावेणं जाव छट्ठिया पुढवी अहेसत्तमं पुढविं पणिहाय सव्वखुड्डिया सव्वंतेसु॥९२॥
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