Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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जीवाजीवाभिगम सूत्र
विवेचन - सात नरकों में नैरयिकों की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति इस प्रकार होती है -
जघन्य स्थिति - पहली नारकी में दस हजार वर्ष, दूसरी में एक सागरोपम, तीसरी में तीन सागरोपम, चौथी में सात सागरोपम, पांचवीं में दस सागरोपम, छठी में सतरह सागरोपम और सातवीं में बाईस सागरोपम की जघन्य स्थिति होती है।
उत्कृष्ट स्थिति - पहली नारकी में एक सागरोपम, दूसरी में तीन सागरोपम, तीसरी में सात सागरोपम, चौथी में दस सागरोपम, पांचवीं में सतरह सागरोपम, छठी में बाईस सागरोपम और सातवीं में तेतीस सागरोपम की उत्कृष्ट स्थिति होती है।
टीका में प्रतर के अनुसार नैरयिकों की स्थिति बताई है। वह स्थिति आगम से बाधित नहीं होने से उसे कहने में कोई बाधा नहीं है।
. नैरयिकों की उद्वर्तना इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए णेरइया अणंतरं उव्वट्टिय कहिं गच्छंति? कहिं उववजंति? किं णेरइएसु उववजंति? किं तिरिक्खजोणिएसु उववज्जति? एवं उव्वट्टणा भाणियव्वा जहा वक्कंतीए तहा इह वि जाव अहेसत्तमाए॥९१॥
भावार्थ - हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के नैरयिक वहां से निकल कर कहां जाते हैं? कहाँ. उत्पन्न होते हैं? क्या नैरयिकों में उत्पन्न होते हैं, तिर्यंचयोनिकों में उत्पन्न होते हैं ? इस प्रकार उद्वर्तना कह देनी चाहिये। जैसा कि प्रज्ञापना सूत्र के व्युत्क्रांति पद में कहा गया है वैसा ही यहां भी यावत् अधः सप्तम पृथ्वी तक कह देना चाहिये। - विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में नैरयिक जीवों की उद्वर्तना का कथन किया गया है जो कि प्रज्ञापना सूत्र के व्युत्क्रांति पद के अनुसार समझना चाहिये। संक्षेप में पहली नरक से लगा कर छठी नरक तक के नैरयिक वहां से सीधे निकल कर नैरयिक, देव, एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय, सम्मूर्छिम पंचेन्द्रिय और असंख्यात वर्ष की आयु वाले मनुष्य और तिर्यंचों को छोड़ कर शेष मनुष्यों और तिर्यंचों में उत्पन्न होते हैं जबकि सातवीं नरक के नैरयिक वहां से निकल कर गर्भज तिर्यंच पंचेन्द्रियों में ही उत्पन्न होते हैं अन्यत्र नहीं।
नरकों में पृथ्वी आदि का स्पर्श इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए णेरड्या केरिसयं पुढविफासं पच्चणुभवमाणा विहरंति? - गोयमा! अणिटुं जाव अमणामं, एवं जाव अहेसत्तमाए।
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