Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
२३२
जीवाजीवाभिगम सूत्र
सत्तणू तिणि य रयणीओ छच्च अंगुलाई, तत्थ णं जे से उत्तरवेडव्विए से जहणेणं अंगुलस्स संखेज्जइभागं उक्कोसेणं पण्णरस धणूई अड्डाइज्जाओ रयणीओ। दोच्चाए भवधारणिज्जे जहण्णओ अंगुलासंखेज्जइभागं उक्कोसेणं पण्णरस धणूई अड्डाइज्जाओ रयणीओ उत्तरवेउव्विया जहणणेणं अंगुलस्स संखेज्जइभागं उक्को एक्कतीसं धणूई एक्का रयणी ।
तच्चाए भवधारणिज्जे एक्कतीसं धणूई एक्का रयणी, उत्तरवेडव्विया बासट्ठि धणूइं दोणि रयणीओ, चउत्थीए भवधारणिज्जे बासट्ठि धणूइं दोण्णि य रयणीओ उत्तरवेउब्विया पणवीसं धणुस ।
पंचमीए भवधारणिजे पणवीसं धणुसयं, उत्तरवेडव्विया अड्डाइज्जाई धणुसयाई, छट्ठीए भवधारणिज्जा अड्डाइज्जाइं धणुसयाई, उत्तरवेउव्विया पंचधणुसयाई, सत्तमाए भवधारणिज्जा पंचधणुसयाइं उत्तरवेडव्विए धणुसहस्सं ॥ ८६ ॥
कठिन शब्दार्थ- सरीरोगाहणा- शरीरावगाहना, भवधारणिज्जा भवधारणीय, उत्तरवेउब्वियाउत्तर वैक्रिय, धणू- धनुष, रयणीओ रलि (हाथ), अंगुलाई - अंगुल ।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के नैरयिकों की शरीरावगाहना कितनी कही गई है ?
उत्तर- हे गौतम! रत्नप्रभा पृथ्वी के नैरयिकों की शरीर - अवगाहना दो प्रकार की कही गई है। वह इस प्रकार है भवधारणीय और २. उत्तरवैक्रिय । भवधारणीय अवगाहना जघन्य अंगुल का असंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट सात धनुष तीन हाथ छह अंगुल है । उत्तरवैक्रिय अवगाहना जघन्य अंगुल का संख्यातवां भाग उत्कृष्ट पन्द्रह धनुष अढाई हाथ है।
दूसरी नरक पृथ्वी के नैरयिकों की भवधारणीय शरीरावगाहना जघन्य अंगुल का असंख्यातवां भाग उत्कृष्ट पन्द्रह धनुष ढाई हाथ है। उत्तरवैक्रिय अवगाहना जघन्य अंगुल का संख्यातवां भाग और उत्कृष्ट इकतीस धनुष एक हाथ है।
तीसरी नरक के नैरयिकों की भवधारणीय अवगाहना इकत्तीस धनुष एक हाथ और उत्तरवैक्रिय अवगाहना बासठ धनुष दो हाथ है।
चौथी नरक के नैरयिकों की भवधारणीय अवगाहना बासठ धनुष दो हाथ और उत्तरवैक्रिय अवगाहना एक सौ पच्चीस धनुष है।
पांचवीं नरक के नैरयिकों की भवधारणीय अवगाहना एक सौ पच्चीस धनुष और उत्तरवैक्रिय अवगाहना दो सौ पचास धनुष है।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jalnelibrary.org