Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तृतीय प्रतिपत्ति - द्वितीय नैरयिक उद्देशक - नरकों में शीत उष्ण वेदना .
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उत्तर - हे गौतम! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के नैरयिक वहां नित्य डरे हुए रहते हैं, नित्य त्रसित रहते हैं, नित्य भूखे रहते हैं, नित्य उद्विग्न रहते हैं, नित्य उपद्रवग्रस्त रहते हैं, नित्य वधिक के समान क्रूर परिणाम वाले, नित्य परम अशुभ और निरन्तर अशुभ रूप से चले आये हुए नरक भव का अनुभव करते हुए विचरते हैं। इसी प्रकार अध:सप्तम पृथ्वी तक कह देना चाहिये।
अधःसप्तम पृथ्वी में पांच अनुत्तर बड़े से बड़े महानरक कहे गये हैं वे इस प्रकार हैं - काल, महाकाल, रौरव, महारौरव और अप्रतिष्ठान। वहां ये पांच महापुरुष सर्वोत्कृष्ट हिंसा आदि पाप कर्मों को एकत्रित कर मृत्यु के समय मर कर अप्रतिष्ठान नरकावास में नैरयिक रूप में उत्पन्न हुए - १. जमयदग्नि का पुत्र परशुराम २. लच्छतिपुत्र दृढायु ३. उपरिचर वसुराज ४. कौरव्य सुभूम और ५. चुलणिपुत्र ब्रह्मदत्त। ये वहां नैरयिक रूप में उत्पन्न हुए जो वर्ण से काले, काली छवि वाले यावत् अत्यंत काले वर्ण वाले कहे गये हैं। वे वहां अत्यंत उज्ज्वल-जाज्वल्यमान् विपुल यावत् असह्य वेदना को वेदते हैं।
विवेचन - रत्नप्रभा पृथ्वी आदि के नैरयिक जीव क्षेत्र स्वभाव से ही अत्यंत गाढ अंधकार को देख कर सदैव डरे हुए और शंकित रहते हैं। परमाधार्मिक देवों के कष्ट और परस्पर की वेदना से नित्य त्रस्त रहते हैं। हमेशा भयंकर क्षुधाग्नि से जलते रहते हैं, नित्य दुःखानुभव के कारण उद्विग्न रहते हैं, नित्य उपद्रवग्रस्त होने से तनिक भी साता नहीं पाते हैं वे वहां नित्य अशुभ, अतुल, अशुभ रूप से . निरन्तर उपचित नरकभव का अनुभव करते हैं। ..
सातवीं नरक के अप्रतिष्ठान.नामक नरकावास में ये पांच महापुरुष सर्वोत्कृष्ट हिंसा आदि पाप. कर्मों को उपार्जन करके वहां की सर्वोत्कृष्ट स्थिति ३३ सागरोपम में उत्पन्न हुए हैं - १. जमदग्नि का पुत्र परशुराम २. लिच्छति (लिच्छवी) पुत्र दृढायु (टीका के अनुसार छातीपुत्र दाढाल) ३. उपरिचर वसु राजा ४. कौरव गोत्रोत्पन्न आठवां चक्रवर्ती सुभूम ५. चुलनीपुत्र ब्रह्मदत्त बारहवां चक्रवर्ती।
नरक की उष्ण वेदना उसिणवेयणिज्जेसु णं भंते! जेरइएसु रइया केरिसयं उसिणवेयणं पच्चणुभवमाणा विहरंति? .
गोयमा! से जहाणामए कम्मारदारए सिया तरुणे बलवं जगवं अप्पायंके थिरग्गहत्थे दढपाणि-पाय-पास-पिटुंतरोरुसंघायपरिणए लंघणपवणजवणवग्गणपमहणसमत्थे तलजमलजुयल( फलिहणिभ)बाहू घणणिचियवलियवदृखंधे चम्मेढग-दुहण-मुट्ठिय समाहयणिचियगत्तगत्ते उरस्सबलसमण्णागए छेए दक्खे पट्टे कुसले णिउणे मेहावी
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