Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
तृतीय प्रतिपत्ति - द्वितीय नैरयिक उद्देशक - नैरयिकों में संहनन .
२३३
छठी नरक के नैरयिकों की भवधारणीय अवगाहना दो सौ पचास धनुष और उत्तरवैक्रिय अवगाहना पांच सौ धनुष है। ____ सातवीं नरक के नैरयिकों की भवधारणीय अवगाहना पांच सौ धनुष और उत्तरवैक्रिय अवगाहना : एक हजार धनुष है।
विवेचन - नैरयिक जीवों की अवगाहना दो तरह की होती है - १. भवधारणीय और २. उत्तरवैक्रिय। जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त शरीर का जो परिमाण रहता है अर्थात् जो स्वाभाविक परिमाण है उसे भवधारणीय कहते हैं। स्वाभाविक शरीर धारण करने के बाद किसी कार्य विशेष से जो शरीर बनाया जाता है उसे उत्तरवैक्रिय कहते हैं। . __पहली नरक में भवधारणीय उत्कृष्टं अवगाहना सात धनुष, तीन रलियाँ और छह अंगुल होती है. अर्थात् उत्सेधांगुल से उनकी अवगाहना सवा इकतीस हाथ होती है। इससे आगे की नरकों में दुगुनी दुगुनी अवगाहना होती है अर्थात् दूसरी नरक में पन्द्रह धनुष दो हाथ बारह अंगुल उत्कृष्ट अवगाहना होती है। तीसरी नरक में इकतीस धनुष एक हाथ, चौथी में बासठ धनुष दो हाथ, पांचवीं में एक सौ पच्चीस धनुष, छठी में ढाई सौ धनुष और सातवीं में पांच सौ धनुष की उत्कृष्ट अवगाहना होती है। :
__सभी नरकों में भवधारणीय जघन्य अवगाहना अंगुल का असंख्यातवां भाग होती है। वह उत्पत्ति के समय होती है। दूसरे समय में नहीं। उत्तरवैक्रिय में जघन्य अवगाहना अंगुल के संख्यातवां भाग होती है क्योंकि तथाविध प्रयत्न के अभाव में उत्तरवैक्रिय प्रथम समय में ही अंगुल के संख्यातवें भाग प्रमाण ही होती है। प्रत्येक पृथ्वी के नैरयिकों की भवधारणीय अवगाहना से उनकी उत्तरवैक्रिय अवगाहना दुगुनी दुगुनी होती है।
टीका में नैरयिक जीवों की प्रस्तटों के अनुसार अवगाहना बताई है। किन्तु इस प्रकार प्रस्तटों के अनुसार अवगाहना का क्रम आगम से उचित नहीं लगता है। आगम वर्णन को देखते हुए प्रत्येक प्रस्तट में अवगाहना अपनी-अपनी नरक प्रायोग्य उत्कृष्ट भी हो सकती है। प्रज्ञापना सूत्र के पांचवें पद (जीवपर्याय) में उत्कृष्ट अवगाहना के नैरयिकों में स्थिति द्विस्थान पतित बताई है। अर्थात् उत्कृष्ट अवगाहना सातवीं नारकी के नैरयिकों की होती है। वह उत्कृष्ट अवगाहना २२ सागर से ३३ सागर तक की स्थिति वाले किसी भी नैरयिक में हो सकती है। इसी प्रकार प्रथम नरक में १० हजार वर्ष की स्थिति वाले (प्रथम प्रस्तट) में नैरयिकों की अवगाहना उत्कृष्ट अर्थात् ७॥ धनुष और ६ अंगुल भी हो सकती है इसी तरह अन्य नरकों में भी समझना चाहिये।
. . नैरयिकों में संहनन इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए णेरइयाणं सरीरया किं संघयणी पण्णत्ता?
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org