Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
तृतीय प्रतिपत्ति - द्वितीय नैरयिक उद्देशक - नरकावासों के वर्ण गंध आदि
२२५
नरकावासों के वर्ण गंध आदि . इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीएणरया केरिसया वण्णेणं पण्णत्ता?
गोयमा! काला कालोभासा गंभीरलोमहरिसा भीया उत्तासणया परम किण्हा वण्णेणं पण्णत्ता, एवं जाव अहेसत्तमा। ___ कठिन शब्दार्थ - कालोभासा - कृष्णावभास-काली प्रभा वाले, गंभीरलोमहरिसा - भय के उत्कट रोमाञ्च वाले, भीमा - अतीव भयानक, उत्तासणया - उत्त्रासनक-अत्यंत त्रास करने वाले, परमकिण्हा - परम काले।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के नरक वर्ण से कैसे कहे गये हैं ?
उत्तर - हे गौतम! रत्नप्रभा पृथ्वी के नरकावास काले हैं, काली प्रभा वाले हैं, रोंगटे खड़े कर देने वाले हैं, भयानक हैं, नैरयिक जीवों को अत्यंत त्रास करने वाले हैं और परम काले हैं। इसी प्रकार सातों नरक पृथ्वियों के वर्ण के विषय में समझना चाहिये।
इमीसे णं भंते! रयणप्पभा पुढवीए णरगा केरिसया गंधेणं पण्णत्ता?
गोयमा! से जहाणामए अहिमडेइ वा गोमडेइ वा सुणगमडेइ वा मज्जारमडेइ वा मणुस्समडेइवा महिसमडेइ वा मूसगमडेइ वा आसमडेइ वा हत्थिमडेइ वा सीहमडेइ वा वग्घमडेइ वा विगमडेइ वा दीवियमडेइ वा मयकुहिय चिरविणट्ठकुणिम वावण्ण दुब्धिगंधे असुइविलीण विगयबीभत्थ दरिसणिज्जे किमिजालाउल संसत्ते, भवेयारूवे सिया? ___णो इणटे समठे, गोयमा! इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए णरगा एत्तो अणिद्वैतरगा
चेव अकंततरगा चेव जाव अमणामतरगा चेव गंधेणं पण्णत्ता, एवं जाव अहेसत्तमाए पुढवीए॥
. कठिन शब्दार्थ - अहिमडेइ - सर्प का मृत कलेवर, मयकुहियचिरविणट्ठ कुणिम वावण्ण दुभिगंधे - मृतकुथित चिर विनष्ट कुणिम व्यापन्न दुरभिगंधः-मृत कलेवर को ज्यादा समय होने से जो फूल कर सड़ गया हो, जिसका मांस सड़-गल गया हो, असुरविलीणविगयबीभत्थ दरिसणिज्जेअशुचि विलीन विगत बीभत्सा दर्शनीयः-अशुचि रूप होने से कोई उसके पास न जाना चाहे ऐसा घृणोत्पादक और बीभत्स दर्शन वाला, किमिजालाउलसंसते - कृमि जाला कुल संसक्तः-जिसमें कीड़ों का समूह बिलबिला रहा हो, अणि?तरगा - अनिष्टतर, अकंततरगा - अकांततर, अमणामतरगा - अमनामतर।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org