Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तृतीय प्रतिपत्ति - प्रथम नैरयिक उद्देशक - नरकावासों की संख्या
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प्रत्येक विदिशा में पन्द्रह-पन्द्रह (१५-१५) आवलिका प्रविष्ट नरकावास हैं। बीच में एक नरकेन्द्रक है। कुल मिला कर १२५ होते हैं। शेष छह प्रतरों में पहली नरक की तरह आठ आठ कम होते जाते हैं। कुल मिला कर सात सौ सात (७०७) आवलिका प्रविष्ट नरकावास हैं। शेष नौ लाख निन्यानवें हजार दो सौ तिरानवें (९९९२९३) प्रकीर्णक नरकावास हैं। कुल मिला कर चौथी नरक में दस लाख नरकावास हैं।
पांचवीं नरक में ५ प्रतर हैं। पहले प्रतर की प्रत्येक दिशा में नौ नौ और प्रत्येक विदिशा में आठ आठ नरकावास हैं। बीच में एक नरकेन्द्रक है। कुल मिला कर ६८ होते हैं शेष चार प्रतरों में आठ आठ कम होते जाते हैं कुल मिला कर दो सौ पैंसठ (२६५) आवलिका प्रविष्ट नरकावास हैं। शेष दो लाख निन्यानवें हजार दो सौ पैंतीस प्रकीर्णक नरकावास हैं। कुल मिला कर पांचवीं पृथ्वी में तीन लाख नरकावास हैं।
छठी नरक में तीन प्रतर हैं। पहले प्रतर की प्रत्येक दिशा में चार चार और प्रत्येक विदिशा में तीन तीन नरकावास हैं। बीच में एक नरकेन्द्रक है। कुल २९ होते हैं। शेष में आठ आठ कम है। तीनों प्रतरों में तरेसठ आवलिका प्रविष्ट नरकावास हैं शेष निन्यानवें हजार नौ सौ बत्तीस प्रकीर्णक नरकावास हैं। कुल मिला कर पांच कम एक लाख नरकावास हैं।
सातवीं में एक प्रतर है, आंतरा नहीं है और उस एक प्रतर में पांच ही नरकावास है जिनके नाम इस प्रकार है - १. पूर्व दिशा में काल २. पश्चिम दिशा में महाकाल ३. दक्षिण दिशा में रौरव ४. उत्तर दिशा में महारौरव और ५. इन चारों के बीच में अप्रतिष्ठान नरकावास है। ये पांचों ही आवलिका : प्रविष्ट नरकावास हैं। यहाँ पुष्पावकीर्ण नरकावास तो एक भी नहीं है। ' इस प्रकार कुल मिला कर सातों नरकों में चौरासी लाख नरकावास हैं। - अत्थि णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए अहे घणोदहीइ वा घणवाएइ वा तणुवाएइ वा ओवासंतरेइ वा?
हंता अस्थि, एवं जाव अहेसत्तमाए॥७१॥ - कठिन शब्दार्थ - घणोदहीइ - घनोदधि-जमा हुआ जल, ठोस बर्फ जैसा, घणबाएइ.घनवात-घनीभूत (पिण्डीभूत) ठोस वायु जैसे नाइट्रोजन, तणुवाएइ - तनुवात-हल्की वायु जैसे हाइड्रोजन आदि, ओवासंतरेइ - शुद्ध आकाश।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के नीचे क्या घनोदधि है, घनवात है, तनुवात है अथवा शुद्ध आकाश है?
उत्तर - हाँ गौतम! है। इसी प्रकार सातों पृथ्वियों के नीचे घनोदधि, घनवात, तनुवात और शुद्ध आकाश है।
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