Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तृतीय प्रतिपत्ति - द्वितीय नैरयिक उद्देशक - नरकावासों का आकार
२२१
सातों नरक पृथ्वियों के बाहल्य, मध्य भाग के पोलार एवं नरकावासों की संख्या को बताने वाली चार संग्रहणी गाथाएं इस प्रकार है -
असीयं बत्तीस अट्ठावीस तहेव वीसं च। अट्ठारस सोलसर्ग अठुत्तरमेव हैट्ठिमया॥१॥ अठ्ठत्तरं च तीसं छव्वीसं चेव सयसहस्सं तु। अट्ठारस सोलसगं चोद्दस महियं तु छट्ठीए॥२॥ अद्धतिवण्ण सहस्सा उवरि अहे वज्जऊण तो भणिया। मज्झे तिसु सहस्सेसु होति निरया तमतमाए॥3॥ तीसा य पणवीसा पण्णरस दस चेव सयसहस्साई। तिण्णि य पंचूणेगं पंचेण अणुत्तरा निरया॥४॥ इन चारों गाथाओं का अर्थ इस कोष्ठक से स्पष्ट हो जाता है
पृथ्वी नाम | बाहल्य (योजन) | मध्य भाग (योजन)| नरकावासों की संख्या १. : रत्नप्रभा १,८०,००० १,७८,०००
३०,००००० शर्कराप्रभा १,३२,०००
१,३०,०००
२५,००००० बालुकाप्रभा १,२८,००० १,२६,०००
१५,००००० पंकप्रभा १,२०,०००
१,१८,०००
१०,००००० धूमप्रभा | १,१८,००० १,१६,०००
३,००,००० तमःप्रभा १,१६,०००
१,१४,०००
९९९९५ तमःतमःप्रभा | १,०८,००० ३,०००
"नरकावासों का आकार इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए णरगा किं संठिया पण्णता?
गोयमा! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - आवलियपविट्ठा य आवलियबाहिरा य, तत्वणं जे ते आवलियपविट्ठा ते तिविहा पण्णत्ता तं जहा - वट्टा तंसा चउरंसा, तत्थ णजे ते आवलियबाहिरा ते णाणासंठाणसंठिया पण्णत्ता तं जहा - अयकोट्ठसंठिया पिट्ठपयणगसंठिया कंसठिया लोहीसंठिया कडाहसंठिया थालीसंठिया पिढरगसंठिया किमियडसंठिया किण्णपडगसंठिया उडवसंठिया मुखसंठिया मुयंगसंठिया
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