Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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जीवाजीवाभिगम सूत्र
होता है । बालुकाप्रभा के सब दिशा विदिशाओं के चरमान्त से अलोक तीन भाग सहित तेरह योजन की दूरी पर है। पंकप्रभा और अलोक के बीच १४ योजन का, धूमप्रभा और अलोक के बीच १५ योजन का, तमः प्रभा और अलोक के बीच तीन भाग सहित पन्द्रह योजन का तथा अधः सप्तम पृथ्वी और अलोक के बीच सोलह (१६) योजन का अपान्तराल है।
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इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढंवीए पुरत्थिमिल्ले चरिमंते कइविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! तिविहे पण्णत्ते, तं जहा - घणोदहि वलए घणवाय वलए तणुवाय वलए। इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए दाहिणिल्ले चरिमंतें कइविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! तिविहे पण्णत्ते, तं जहा एवं जाव उत्तरिल्ले, एवं सव्वासिं जाव अहेसत्तमाए उत्तरिल्ले ॥ ७५ ॥
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भावार्थ- प्रश्न - हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के पूर्व दिशा का चरमान्त कितने प्रकार का कहा गया है ?
उत्तर - हे गौतम! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के पूर्व दिशा का चरमान्त तीन प्रकार का कहा गया है वह. इस प्रकार है - घनोदधि वलय, घनवात वलय और तनुवात वलय ।
प्रश्न - हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के दक्षिण दिशा का चरमान्त कितने प्रकार का कहा गया है ?
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उत्तर - हे गौतम! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के दक्षिण दिशा का चरमान्त तीन प्रकार का कहा गया है।
यथा
घनोदधि वलय, घनवात वलय और तनुवात वलय । इसी प्रकार उत्तरदिशा के चरमान्तं तक कहना चाहिये। इसी प्रकार सातवीं पृथ्वी तक की सब पृथ्वियों के उत्तरी चरमान्त तक सब दिशाओं के चरमान्तों के भेद कह देने चाहिये ।
विवेचन - रत्नप्रभा पृथ्वी के पूर्व दिशा वाले चरमान्त और अलोक के बीच में जो अपान्तराल है वह घनोदधि, घनवात और तनुवात से व्याप्त है और ये घनोदधि आदि वलयाकार होने से घनोदधि वलय, घनवात वलय और तनुवात वलय कहे जाते हैं। रत्नप्रभा की तरह ही सभी नरक पृथ्वियों के चरमान्त के चारों दिशाओं में इसी प्रकार तीन-तीन विभाग हैं। अब इन वलयों की मोटाई बताने के लिये सूत्रकार कहते हैं
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घनोदधि आदि वलयों की मोटाई
इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए घणोदहि वलए केवइयं बाहल्लेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! छ जोयणाणि बाहल्लेणं पण्णत्ते ।
सक्करप्पभाए पुढवीए घणोदहि वलए केवइयं बाहल्लेणं पण्णत्ते ?
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