Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तृतीय प्रतिपत्ति प्रथम नैरयिक उद्देशक - बाहल्य की अपेक्षा तुल्यता आदि
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पंकप्पभाए पुढवीए चत्तालीसुत्तरं जोयणसयसहस्सं । धूमप्पभाए पुढवीए अट्ठतीसुत्तरं जोयणसयसहस्सं । तमाए पुढवीए छत्तीसुत्तरं जोयणसयसहस्सं । अहेसत्तमाए पुढवीए अट्ठावीसुत्तरं जोयणसयसहस्सं जाव अहेसत्तमाए णं भंते! पुढवीए उवरिल्लाओ चरिमंताओ उवासंतरस्स हेट्ठिल्ले चरिमंते केवइयं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ?
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गोयमा! असंखेज्जाई जोयणसयसहस्साइं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ॥ ७९ ॥ कठिन शब्दार्थ - संबंधेयव्वो - संबंध जोड़ लेना चाहिये, बुद्धीए - बुद्धि से ।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! दूसरी पृथ्वी के ऊपर के चरमान्त से नीचे के चरमान्त के बीच कितना अन्तर है ?
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उत्तर - हे गौतम! एक लाख बत्तीस हजार योजन का अन्तर है । शर्कराप्रभा पृथ्वी के ऊपर के चरमान्त से घनोदधि के नीचे के चरमान्त तक एक लाख बावन हजार योजन का अन्तर है। घनवात के उपरितन चरमान्त का अंतर भी इतना ही है । घनवात के नीचे के चरमांत तक तथा तनुवात और अवकाशान्तर के ऊपर और नीचे के चरमांत तक असंख्यात लाख योजन का अन्तर है । इस प्रकार अधः सप्तम पृथ्वी तक कह देना चाहिये । विशेषता यह है कि जिस पृथ्वी का जितना बाहल्य है उससे घनोदधि का संबंध बुद्धि से जोड़ लेना चाहिये। जैसे कि - तीसरी पृथ्वी के ऊपर के चरमांत से घनोदधि के चरमांत तक एक लाख अड़तालीस हजार योजन का अंतर है। पंकप्रभा पृथ्वी के ऊपर के चरमान्त से उसके घनोदधि के चरमान्त तक एक लाख चवालीस हजार का अन्तर है । धूमप्रभा के ऊपरी चरमांत से उसके घनोदधि के चरमांत तक एक लाख अड़तीस हजार योजन का अन्तर है । तमः प्रभा में एक लाख छत्तीस हजार योजन का अन्तर तथा अधः सप्तम पृथ्वी के ऊपर के चरमांत से उसके घनोदधि के चरमांत तक एक लाख अट्ठावीस हजार योजन का अंतर है। इसी प्रकार घनवात के अधः सप्तम चरमान्त की पृच्छा में तनुवात और अवकाशान्तर के ऊपरितन और अधः स्तन की पृच्छा में असंख्यात लाख योजन का अन्तर कह देना चाहिये ।
विवेचन प्रस्तुत सूत्र में सातों पृथ्वियों के अलग अलग विभागों का क्रमानुसार अंतर बताया गया है। बाहल्य की अपेक्षा तुल्यता आदि
इमा णं भंते! रयणप्पभा पुढवी दोच्चं पुढविं पणिहाय बाहल्लेणं किं तुल्ला, विसेसाहिया संखेज्जगुणा ? वित्थारेणं किं तुल्ला विसेसहीणा संखेज्जगुणहीणा ?
गोयमा! इमाणं रयणप्पभा पुढवी दोच्चं पुढविं पणिहाय बाहल्लेणं णो तुल्ला, विसेसाहिया णो संखेज्जगुणा, वित्थारेणं णो तुल्ला, विसेसहीणा, णो संखेज्जगुणहीणा ।
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