Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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"जीवाजीवाभिगम सूत्र
विवेचन - सातों नरक पृथ्वियों में नरकावासों की संख्या इस प्रकार समझनी चाहिये . नरक के एक परदे के बाद जो स्थान होता है उसी तरह के स्थानों को प्रतर अथवा प्रस्तट (पाथड़ा) कहते हैं। पहली नरक से लेकर छठी नरक तक प्रत्येक नरक के दो प्रकार के नरकावास हैं १. आवलिका प्रविष्ट और २. आवलिका बाह्य (प्रकीर्णक) । जो नरकावास चारों दिशाओं में पंक्ति रूप से अवस्थित हैं वे आवलिका प्रविष्ट कहे जाते हैं। जो नरकावास पंक्ति रूप से अवस्थित नहीं है किंतु इधर उधर बिखरे हुए हैं वे प्रकीर्णक कहे जाते हैं।
रत्नप्रभा पृथ्वी में तेरह प्रतर हैं। पहले प्रतर के चारों तरफ प्रत्येक दिशा में उनपचास-उनपचास (४९-४९) नरकावास हैं और प्रत्येक विदिशा में अड़तालीस - अड़तालीस (४८-४८) नरकावास हैं बीच में सीमन्तक नाम का नरकेन्द्रक है । सब मिलाकर पहले प्रतर में तीन सौ नवासी (३८९) आवलिका प्रविष्ट नरकावास हैं। दूसरे प्रतर में प्रत्येक दिशा में अड़तालीस - अड़तालीस (४८-४८) और विदिशा में सैंतालीस - सैंतालीस (४७-४७) नरकावास हैं अर्थात् पहले प्रतर से आठ कम हैं। इसी तरह सभी प्रतरों में दिशाओं में और विदिशाओं में एक एक कम होने से पूर्व प्रतर से आठ आठ कम होते जाते हैं। कुल मिला कर तेरह प्रतरों में चार हजार चार सौ तेतीस (४४३३) आवलिका प्रविष्ट नरकावास हैं। बाकी उनतीस लाख पचानवें हजार पांच सौ सड़सठ (२९९५५६७) प्रकीर्णक नरकावास हैं। कुल मिला कर पहली नरक में तीस लाख नरकावास हैं।
दूसरी नरक में ११ प्रतर हैं। इसी तरह नीचे की नरकों में भी दो-दो कम समझ लेना चाहिये । दूसरी नरक के पहले प्रतर में प्रत्येक दिशा में छत्तीस - छत्तीस (३६-३६) आवलिका प्रविष्ट नरकावास हैं और प्रत्येक विदिशा में ३५-३५, बीच में एक नरकेन्द्रक है। सब मिला कर दो सौ पचासी (२८५) नरकावास हैं। दिशा और विदिशाओं में एक एक की कमी के कारण बाकी दश प्रतरों में क्रमशः आठ घटते जाते हैं । ग्यारह ही प्रतरों में कुल मिला कर दो हजार छह सौ पचाणवें ( २६९५) आवलिका प्रविष्ट नरकावास हैं। शेष चौबीस लाख सत्तानवें हजार तीन सौ पांच (२४९७३०५ ) प्रकीर्णक नरकावास हैं। इस तरह दूसरी नरक में कुल मिला कर पच्चीस लाख नरकावास हैं।
तीसरी नरक में नौ प्रतर हैं। पहले प्रतर की प्रत्येक दिशा में पच्चीस पच्चीस (२५-२५) और विदिशा में चौबीस चौबीस (२४-२४) आवलिका प्रविष्ट नरकावास हैं बीच में एक नरकेन्द्रक है। कुल मिला कर एक सौ सत्तानवे (१९७) आवलिका प्रविष्ट नरकावास हैं। शेष आठ प्रतरों में क्रमशः आठ आठ कम होते जाते हैं। सभी प्रतरों में कुल मिला कर एक हजार चार सौ पचासी आवलिका प्रविष्ट नरकावास हैं। शेष चौदह लाख अठानवें हजार पांच सौ पन्द्रह (१४९८५१५ ) प्रकीर्णक नरकावास हैं। कुल मिला कर तीसरी नरक में पन्द्रह लाख नरकावास हैं ।
चौथी नरक में सात प्रतर हैं। पहले प्रतर में प्रत्येक दिशा में सोलह-सोलह (१६ - १६) तथा
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