Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तच्चा चउत्विह पडिवत्ती
चतुर्विधाख्या तृतीय प्रतिपत्ति पढमोणेरड्य उद्देसो- प्रथम नैरयिक उद्देशक
दस प्रकार की प्रतिपत्तियों में से दूसरी प्रतिपत्ति में जीवों के तीन भेदों का विवेचन किया गया है। इस तीसरी प्रतिपत्ति में चार प्रकार के संसारसमापन्नक जीवों का प्रतिपादन किया जाता है, जिसका प्रथम सूत्र इस प्रकार है -
चार प्रकार के संसारी जीव तत्थ जे ते एवमाहंसु चउव्विहा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता ते एवमाहंसुतं जहा- जेरइया तिरिक्खजोणिया मणुस्सा देवा ॥६५॥
भावार्थ - जो आचार्य इस प्रकार कहते हैं कि संसारसमापन्नक जीव चार प्रकार के कहे गये हैं वे ऐसा प्रतिपादन करते हैं यथा- नैरयिक, तिर्यंचयोनिक, मनुष्य और देव। - विवेचन - संसारसमापन्नक जीवों के दस भेदों की अपेक्षा नौ प्रतिपत्तियां कही गई है। जो आचार्य संसारी जीवों के चार भेद कहते हैं वे इस प्रकार हैं - १. नरक गति के नैरयिक जीव २. तिर्यंचगति के तिर्यंचयोनिक जीव ३. मनुष्य गति के जीव-मनुष्य और ४. देवगति के जीव-देव। प्रथम उद्देशक में नैरयिक जीवों का वर्णन प्रारंभ करते हैं -
नैरयिक जीवों के भेद से किं तं णेरइया?
णेरइया सत्तविहा पण्णत्ता, तं जहा - पढमा पुढविणेरड्या दोच्चा पुढवि णेरइया तच्चा पुढविणेरइया चउत्था पुढवि णेरड्या पंचमा पुढविणेरड्या छट्ठा पुढवि णेरड्या सत्तमा पुढवि णेरइया॥६६॥
भावार्थ - नैरयिक कितने प्रकार के कहे गये हैं? .
नैरयिक सात प्रकार के कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैं - १. प्रथम पृथ्वी के नैरयिक २. द्वितीय पृथ्वी के नैरयिक ३. तृतीय पृथ्वी के नैरयिक ४. चतुर्थ पृथ्वी के नैरयिक ५. पंचम पृथ्वी के नैरयिक ६. षष्ठ पृथ्वी के नैरयिक और ७. सप्तम पृथ्वी के नैरयिक।
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