Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तृतीय प्रतिपत्ति - प्रथम नैरयिक उद्देशक - रत्नप्रभा पृथ्वी के भेद-प्रभेद
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की मोटाई एक लाख अट्ठाईस हजार योजन की है। चौथी की मोटाई एक लाख बीस हजार योजन की है। पांचवीं की मोटाई एक लाख अठारह हजार योजन की है और सातवीं की मोटाई एक लाख आठ हजार योजन की है।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में नरक पृथ्वियों का बाहल्य कहा गया है जो इस प्रकार है - रत्नप्रभा पृथ्वी का बाहल्य (मोटाई) १ लाख ८० हजार योजन, शर्कराप्रभा का बाहल्य १ लाख ३२ हजार योजन, बालुकाप्रभा का बाहल्य १ लाख २८ हजार, पंकप्रभा का बाहल्य १ लाख २० हजार, धूमप्रभा का बाहल्य १ लाख १८ हजार, तमःप्रभा का बाहल्य १ लाख १६ हजार और तमस्तमःप्रभा का बाहल्य १ लाख ८ हजार योजन का है।
. रत्नप्रभा पृथ्वी के भेद-प्रभेद इमा णं भंते! रयणप्पभापुढवी कइविहा पण्णत्ता? गोयमा! तिविहा पण्णत्ता, तं जहा - खरकंडे पंकबहुले कंडे आवबहुले कंडे।
इमीसे णं भंते! रयणप्पभापुढवीए खरकंडे कइविहे पण्णत्ते? . गोयमा! सोलसविहे पण्णत्ते तं जहा - १ रयणकंडे, २ वइरे, ३ वेरुलिए, ४ लोहियक्खे, ५ मसारगल्ले, ६ हंसगब्भे, ७ पुलए, ८ सोगंधिए, ९ जोइरसे, १० अंजणे, ११ अंजणपुलए, १२ रयए, १३ जायरूवे, १४ अंके, १५ फलिहे, १६ रिट्टे कंडे॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! यह रत्नप्रभा पृथ्वी कितने प्रकार की कही गई है?
उत्तर - हे गौतम! यह रत्नप्रभा पृथ्वी तीन प्रकार की कही गई है वह इस प्रकार हैं - १. खरकाण्ड २. पंकबहुल काण्ड और ३. अपबहुलकांड। ... प्रश्न - हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी का खरकाण्ड कितने प्रकार का कहा गया है?
उत्तर - हे गौतम! इस रत्नप्रभा पृथ्वी का खरकाण्ड सोलह प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार हैं - १. रत्नकाण्ड २. वज्रकाण्ड ३. वैडूर्य ४. लोहिताक्ष ५. मसारगल्ल ६. हंसगर्भ ७. पुलक ८. सौगंधिक ९. -ज्योतिरस १०. अंजन ११. अंजनपुलक १२. रजत १३. जातरूप १४. अंक १५. स्फटिक और १६. रिष्टकांड। -
विवेचन - रत्नप्रभा पृथ्वी के तीन प्रकार (विभाग) हैं - १. खरकांड २. पंकबहुल काण्ड ३. अपबहल (जल की अधिकता वाला) कांड। काण्ड का अर्थ है - विशिष्ट भू भाग। खर का अर्थ है कठोर (कठिन)। रत्नप्रभा पृथ्वी के खर काण्ड के सोलह विभाग हैं - १. रत्नकाण्ड २. वज्रकाण्ड
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