Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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द्वितीय प्रतिपत्ति - नपुंसक के भेद
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और २. अनुभव योग्य। दस कोडाकोडी सागरोपम की यह स्थिति कर्म अवस्थान रूप है। अनुभव योग्य जो कर्म स्थिति होती है वह अबाधाकाल से रहित होती है। अबाधाकाल पूरा हुए बिना कोई कर्म उदय में नहीं आता। जिस कर्म की उत्कृष्ट स्थिति जितने कोडाकोडी सागरोपम की होती है उसका अबाधाकाल उतने ही सौ वर्ष का होता है। पुरुषवेद की उत्कृष्ट स्थिति दस कोडाकोडी सागरोपम की कही गई है तो पुरुष वेद का अबाधाकाल दस सौ अर्थात् एक हजार वर्ष का होता है। अबाधा काल से रहित स्थिति ही अनुभव योग्य होती है और यही कर्मनिषेक है।
पुरुष वेद का स्वभाव पुरिस वेए णं भंते! किं-पगारे पण्णत्ते? गोयमा! वणदवग्गि जाल समाणे पण्णत्ते। सेत्तं पुरिसा॥५७॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! पुरुष वेद किस प्रकार का कहा गया है?
उत्तर - हे गौतम! पुरुष वेद वन की अग्नि (दावाग्नि) ज्वाला के समान है। यह पुरुष वेद का निरूपण हुआ। .
विवेचन - जिस प्रकार वन की अग्नि प्रारम्भ में तीव्र दाह वाली होती है उसी प्रकार पुरुषवेद का प्रारम्भ तो तीव्र कामाग्नि रूप से होता है किन्तु वह शीघ्र शांत भी हो जाता है। यह पुरुष का अधिकार हुआ।
नपुंसक के भेद से किं तं नपुंसगा?
णपुंसगा तिविहा पण्णत्ता, तंजहा - णेरड्य णपुंसगा, तिरिक्खजोणिय णपुंसगा मणुस्स णपुंसगा। ..
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! नपुंसक कितने प्रकार के कहे गये हैं ?
उत्तर - हे गौतम! नपुंसक तीन प्रकार के कहे गये हैं। यथा - १. नैरयिक नपुंसक २. तिर्यंचयोनिक नपुंसक और ३. मनुष्य नपुंसक।
विवेचन - पुरुषवेद का निरूपण करने के पश्चात् सूत्रकार नपुंसकवेद का कथन करते हैं। गति की अपेक्षा नपुंसक के तीन भेद हैं-नैरयिक नपुंसक, तिर्यंच नपुंसक और मनुष्य नपुंसक। देव नपुंसक नहीं होते हैं। अब सूत्रकार नपुंसक के अलग-अलग भेदों का कथन करते हैं - .
से किं तं णेरइय णपुंसगा? णेरड्या णपुंसगा सत्तविहा पण्णत्ता, तंजहा-रयणप्पभापुढविणेरइय णपुंसगा,
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