Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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जीवाजीवाभिगम सत्र
सागरोवमसहस्साइं संखिजवासमब्भहियाइं, पुढवि आउतेउवाऊणं जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं वणस्सइकालो, वणस्सइकाइयाणं जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं असंखेजकालं जाव असंखेज्जालोया, सेसाणं बेइंदियाईणं जाव खहयराणं जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं वणस्सइकालो।
भावार्थ - तिर्यंचयोनिक नपुंसक का अंतर जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट कुछ अधिक सागरोपम शत पृथक्त्व का है। एकेन्द्रिय तिर्यंच नपुंसक का अंतर जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट संख्यात वर्ष अधिक दो हजार सागरोपम तथा पृथ्वीकायिक, अपकायिक, तेजस्कायिक और वायुकायिक नपुंसक का अंतर जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट वनस्पतिकाल का है। वनस्पतिकायिक नपुंसकों का अंतर जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट असंख्यातकाल यावत् असंख्यात लोक का है। शेष बेइन्द्रिय आदि यावत् खेचर नपुंसकों का अंतर जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल का है।
विवेचन - सामान्य तिर्यंच नपुंसक का अंतर जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट सातिरेक (कुछ अधिक) सागरोपम शत पृथक्त्व का है। एकेन्द्रिय तिर्यंच नपुंसक का अंतर जघन्य अन्तर्मुहूर्त और . उत्कृष्ट संख्यात वर्ष अधिक दो हजार सागरोपम का कहा है क्योंकि एकेन्द्रिय तिर्यंच नपुंसक जीव मरकर त्रसकायों में उत्पन्न होवे तो त्रसकाय की व्यवधान रूप काल स्थिति इतनी ही होती है इसके बाद वह पुनः एकेन्द्रिय होता है। यह एकेन्द्रिय तिर्यंच नपुंसक का सामान्य अंतर है। विशेष कथन इस प्रकार है - __ पृथ्वीकायिक नपुंसक, अप्कायिक नपुंसक, तेजस्कायिक नपुंसक और वायुकायिक नपुंसक का अंतर जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है। वनस्पतिकायिक नपुंसक का अंतर जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट असंख्यातकाल है। यह असंख्यात काल, काल की अपेक्षा असंख्यात उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी रूप होता है और क्षेत्र की अपेक्षा असंख्यात लोक प्रमाण होता है। उत्सर्पिणी अवसर्पिणी का असंख्यातपना इस प्रकार समझना चाहिये - असंख्यात लोकाकाश के प्रदेशों में से प्रतिसमय एकएक प्रदेश अपहार करने पर समस्त प्रदेशों के समाप्त होने में जितनी उत्सर्पिणियाँ अवसर्पिणियां व्यतीत हो उतना असंख्यात काल है। वनस्पति भव से निकल कर उत्कृष्ट इतने काल तक जीव अन्य भवों में रह सकता है इसके बाद वह नियम से पुनः वनस्पतिकाय में उत्पन्न होता है। ____बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय और जलचर, स्थलचर, खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच नपुंसकों का अंतर जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अनंतकाल है, यह अनंतकाल वनस्पतिकाल प्रमाण है।
मणुस्स णपुंसगस्स खेत्तं पडुच्च जहण्णेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं वणस्सइकालो। धम्मचरणं पडुच्च जहण्णेणं एगं समयं उक्कोसेणं अणंतं कालं जाव अवडपोग्गल परियट्टू देसूणं एवं कम्मभूमगस्स वि भरहेरवयस्स पुव्वविदेह अवरविदेहगस्स वि।
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