Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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जीवाजीवाभिगम सूत्र
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उत्तर - हे गौतम! मनुष्य पुरुष, मनुष्य पुरुष के रूप में निरन्तर क्षेत्र की अपेक्षा जघन्य अंतर्मुहूर्त , और उत्कृष्ट पूर्व कोटि पृथक्त्व अधिक तीन पल्योपम तक तथा धर्माचरण की अपेक्षा जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट देशोन पूर्व कोटि तक रह सकता है। इसी प्रकार सर्वत्र पूर्व विदेह पश्चिम विदेह के कर्मभूमिज मनुष्य पुरुषों तक के लिए कह देना चाहिए।
जिस प्रकार अकर्मभूमिज मनुष्य स्त्रियों के लिए कहा है उसी प्रकार अकर्मभूमिज मनुष्य पुरुषों के लिए भी समझना चाहिए। इसी प्रकार अंतरद्वीपज के अकर्मभूमि मनुष्यों तक की वक्तव्यता कह देनी चाहिये।
देव पुरुषों की जो स्थिति कही है वही उसका संचिट्ठणा काल है। ऐसा ही कथन सर्वार्थसिद्ध के देव पुरुषों तक कह देना चाहिए।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में पुरुष का पुरुष रूप में निरन्तर रहने का कालमान बताया गया है। सामान्य रूप से पुरुष जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट दो सौ सागरोपम से नौ सौ सागरोपम से कुछ अधिक काल तक पुरुष पर्याय में रह सकता है। इससे अधिक काल तक निरन्तर पुरुष नाम कर्म का उदय नहीं रह सकता अतः नियम से वह स्त्री आदि भाव को प्राप्त करता है। सातिरेक (कुछ अधिक) काल मनुष्य भवों की अपेक्षा समझना चाहिये। विशेष विवक्षा में तिर्यंच पुरुष, मनुष्य पुरुष और देव . पुरुष की अलग-अलग काय स्थिति इस प्रकार है - - तिर्यंच पुरुष, तिर्यंच पुरुष रूप में जघन्य अंतर्मुहूर्त तक और उत्कृष्ट पूर्व कोटि पृथक्त्व अधिक तीन पल्योपम तक रह सकता है। उत्कृष्ट काल में सात भव तो पूर्व कोटि आयुष्य के पूर्व विदेह आदि में और आठवां भव तीन पल्योपम की आयुष्य का देवकुरु या उत्तरकुरु में हो तो पूर्व कोटिपृथक्त्व अधिक तीन पल्योपम की कायस्थिति होती है। जलचर पुरुष की कायस्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट पूर्वकोटि पृथक्त्व है यह उत्कृष्ट काल पूर्वकोटि आयु वाले तिर्यंच पुरुष के पुनः पुनः आठ बार वहीं उत्पन्न होने की अपेक्षा समझना चाहिए। चतुष्पद स्थलचर पुरुष की कायस्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट पूर्वकोटि पृथक्त्व अधिक तीन पल्योपम की औधिक (सामान्य) तिर्यंच पुरुष की कायस्थिति के अनुसार समझनी चाहिये। जलचर पुरुष की तरह उरपरिसर्प स्थलचर पुरुष और भुजपरिसर्प स्थलचर पुरुष की कायस्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट पूर्वकोटि पृथक्त्व की है। खेचर तिर्यंच पुरुष की कायस्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट पूर्वकोटि पृथक्त्व अधिक पल्योपम के असंख्यातवें भाग की कहीं गई है। खेचर पुरुष सात बार तक पूर्व कोटि की स्थिति वाले खेचर पुरुषों में उत्पन्न होकर आठवें भव में पल्योपम के असंख्यातवें भाग की स्थिति वाले अंतरद्वीप आदि के खेचर पुरुषों में उत्पन्न होने की अपेक्षा यह उत्कृष्ट कालमान समझना चाहिये। । सामान्य से मनुष्य पुरुष के निरन्तर मनुष्य पुरुष रूप में उत्पन्न होने का काल क्षेत्र की अपेक्षा
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