Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
द्वितीय प्रतिपत्ति - पुरुष की काय स्थिति
१४५
सातवें ग्रैवेयक के देवों की स्थिति जघन्य २८ सागरोपम, उत्कृष्ट २९ सागरोपम। आठवें ग्रैवेयक के देवों की स्थिति जघन्य २९ सागरोपम, उत्कृष्ट ३० सागरोपम। नौवें ग्रैवेयक के देवों की स्थिति जघन्य ३० सागरोपम, उत्कृष्ट ३१ सागरोपम। चार अनुत्तर विमान के देवों की स्थिति जघन्य ३१ सागरोपम, उत्कृष्ट ३३ सागरोपम। सर्वार्थसिद्ध विमान के देवों की स्थिति अजघन्य अनुत्कृष्ट ३३ सागरोपम।
- पुरुष की काय स्थिति पुरिसे णं भंते! पुरिसे त्ति कालओ केवच्चिरं होइ? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमहत्तं उक्कोसेणं सागरोवमसयपहत्तं साइरेगं। तिरिक्खजोणियपुरिसे णं भंते! कालओ केवच्चिरं होइ?
गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं गुवकोडिपुहुत्तमब्भहियाइं एवं तं चेव, संचिट्ठणा जहा इत्थीणं जाव खहयरतिरिक्खजोणिय पुरिसस्स संचिट्ठणा। - मणुस्स पुरिसाणं भंते! कालओ केवच्चिर होइ?
गोयमा! खेत्तं पडुच्च जहणणेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाई पुव्वकोडिपुहुत्तमब्भहियाई, धम्मचरणं पडुच्च जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं देसूणा पुवकोडी एवं सव्वत्थ जाव पुव्वविदेह अवरविदेह, अकम्मभूमगमणुस्स पुरिसाणं जहा अकम्मभूमगमणुस्सित्थीणं जाव अंतरदीवगाणं जच्चेव ठिई सच्चेव संचिट्ठणा जाव सव्वट्ठसिद्धगाणं॥५४॥
भावार्थ - प्रश्न - हे गवन्! पुरुष, पुरुष रूप में निरन्तर कितने काल तक रह सकता है?
उत्तर - हे गौतम! पुरुष, पुरुष रूप में निरन्तर जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट सागरोपम शत पृथक्त्व से कुछ अधिक काल तक रह सकता है।
प्रश्न - हे भगवन्! तिर्यंच पुरुष, तिर्यंच पुरुष रूप में निरन्तर कितने काल तक रह सकता है?
उत्तर - हे गौतम! तिर्यंच पुरुष, तिर्यंच पुरुष रूप में निरन्तर जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटि पृथक्त्व अधिक तीन पल्योपम तक रह सकता है। इस प्रकार जैसे स्त्रियों की संचिट्ठणा कही वैसे ही खेचर तिर्यंच पुरुष तक संचिट्ठणा समझनी चाहिये।
प्रश्न - हे भगवन्! मनुष्य पुरुष, मनुष्य पुरुष रूप में निरन्तर कितने काल तक रह सकता है?
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org