Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रथम प्रतिपत्ति - मनुष्यों का वर्णन
९३
उत्तर - नहीं, वे इतने सूक्ष्म हैं कि चर्म-चक्षुओं से नहीं देखे जा सकते।
प्रश्न - चौदह स्थानों में उत्पन्न होने वाले सम्मूर्च्छिम मनुष्यों की स्थिति (आयु) और अवगाहना कितनी होती है ?
उत्तर - चौदह स्थानों में एक अंतर्मुहूर्त में सम्मूर्छिम मनुष्य उत्पन्न होते हैं। इनकी अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग परिमाण होती है। इनकी आयु अन्तर्मुहूर्त की होती है अर्थात् ये अंतर्मुहूर्त में अपर्याप्त अवस्था में ही मर जाते हैं।
से किं तं गब्भवक्कंतिय मणुस्सा?
गब्भवक्कंतिय मणुस्सा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा - कम्मभूमया अकम्मभूमया अंतरदीवया, एवं माणुस्स भेदो भाणियव्वो जहा पण्णवणाए तहा णिरवसेसं भाणियव्वं जाव छउमत्था य केवली य, ते समासओ दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - पज्जत्ता य अपज्जत्ता य॥
भावार्थ - गर्भज मनुष्य कितने प्रकार के कहे गये हैं ?
ग़र्भज मनुष्य तीन प्रकार के कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैं - १. कर्मभूमिक (कर्मभूमिज) . २. अकर्मभूमिक (अकर्मभूमिज) और ३. अंतरद्वीपक (अन्तरद्वीपज) इस प्रकार मनुष्यों के भेद तथा सम्पूर्ण वक्तव्यता याबत् छद्मस्थ और केवली पर्यंत प्रज्ञापना सूत्र के अनुसार कह देनी चाहिये। ये मनुष्य संक्षेप से दो प्रकार के कहे गये हैं। यथा - पर्याप्त और अपर्याप्त।
विवेचन - गर्भ से उत्पन्न होने वाले मनुष्य तीन प्रकार के कहे गये हैं - १. कर्मभूमिक २. अकर्मभूमिक और ३. अंतरद्वीपक। प्रज्ञापना सूत्र में गर्भज मनुष्यों का वर्णन इस प्रकार है -
१. कर्मभूमिक (कर्म-भूमिज) - जहां असि (तलवार आदि शस्त्र) मसि (स्याही आदि लिखने पढने का कार्य) कृषि (खेती आदि शारीरिक परिश्रम) के द्वारा मनुष्य अपना निर्वाह करते हैं उसे कर्मभूमि कहते हैं। कर्मभूमि के पन्द्रह भेद हैं - पांच भरत, पांच ऐरवत और पांच महाविदेह, ये १५ कर्मभूमियां हैं। कर्मभूमि में उत्पन्न होने वाले मनुष्य कर्मभूमिक (कर्मभूमिज) कहलाते हैं। .
२. अकर्मभूमिक (अकर्मभूमिज) - जहां असि, मसि, कृषि आदि प्रवृत्ति नहीं होती है, उसे अकर्मभूमि कहते हैं। अकर्मभूमि के मनुष्य अकर्मभूमिक (अकर्मभूमिज) कहलाते हैं। अकर्मभूमि अनुष्यों के तीस प्रकार कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैं - पांच हैमवत, पांच हैरण्यवत, पांच हरिवर्ष, पांच रम्यकवर्ष, पांच देवकुरु और पांच उत्तरकुरु, इन तीस क्षेत्रों में उत्पन्न होने वाले मनुष्य अकर्मभूमि के मनुष्य कहलाते हैं। इन अकर्मभूमि क्षेत्रों में दस प्रकार के वृक्ष होते हैं। ये अपने नाम के अनुसार फल देते हैं इन्हीं से अकर्मभूमिज मनुष्य अपना निर्वाह करते हैं।
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